मतवाली ऋतु ज्यों भंग पिए
नव वर्ष आयो नव रंग लिए
अलसाए जिया मन भाए पिया
अलसाई किरण सकुचात जिए
धरणी ठिठुरे नभ से टपके
ओस बूंद हरस अँखियन से झरे
जुड़ जाए धरा मदमस्त हवा
ले आई खुशी मन पीर हरे
सुरभित पुष्पित लतिकाएं सजी
चित चंचल चलत उमंग लिए
इठलाती चले बलखाती चले
उर में अपने वर वरण किए
प्रण कर निज से कुछ वचन लिए
चन्द्र तारे से रात श्रृंगार किए
दूलहिन जैसे पिया मिलन को
हांथो में वरमाल लिए
मनमीत विषय नव गीत लिखे
नव साज सजे मन गाए प्रिये
मिटे पिप्सा मन आस जगे
नव वर्ष के संग नचाए लिए
Full of enthusiasm
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Thanks
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