बारिश की बूंदो
और बेटियों में कितनी समानता है
वो भी तो बिदा होकर
बादलों को छोड़ चल पड़ती हैं
नैहर से
सिंचित करने पिया का घर
बेटियों की
तरह
अपने पलकों में स्वप्न सजाकर
सुन्दर और सुखद
उनका भी
भयभीत मन सोंचता होगा
कैसा होगा पीघर
डरता होगा
बेटियों की
तरह
मिले सीप सा अगर पिया का घर
ले लेती हैं बूंदें आकार
मोतियों का
और
इठलाती हैं अपने भाग्य पर
बेटियों की
तरह
पर यदि
दुर्भाग्य से कहीं
गिरती हैं नालों में
खत्म हो जाता उनका भी अस्तित्व
फिर वो भी
रोतीं होंगी अपने भाग्य पर
बेटियों की
तरह