एक स्त्री की मनःस्थिति तथा अभिव्यक्ति को एक स्त्री ही अच्छी तरह से समझ सकती है क्योंकि कहीं न कहीं स्त्री होने के नाते उन परिस्थितियों से वह भी गुजरी होती हैं…. यही वजह है कि स्त्रियों की अभिव्यक्तियाँ स्त्री हृदय को स्पर्श कर ही लेती हैं !
भावनाओं की बारिश की बूंदें हृदय सीप में संचित हो काव्य रूपी मोती का आकार लेने लगतीं हैं तो लेखनी माला में पिरोने के लिए उत्सुक हो जाती है! वैसे ही लेखिका आशा सिंह जी की लेखनी ने उनकी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पुस्तक में संग्रहित किया है जो कि मुझे उनके द्वारा उपहार स्वरूप प्राप्त हुआ है ! ….. पुस्तक पढ़ने पर यही महसूस हुआ कि वास्तव में लेखिका आशा सिंह जी की अलग अलग भावनाओं के रंगों में एक सौ चार ( 104 ) पृष्ठ में स्पष्ट अक्षरों में संग्रहित यह प्रथम काव्य संकलन सीप के मोती ही तो हैं !
संकलन के प्रथम दृष्टया कवियित्री आशा सिंह जी द्वारा अपने स्वर्गीय पति के लिए समर्पण भाव को महसूस किया जा सकता है जिसे पढ़ते ही मैं स्वयं भावविभोर हो गई और नयन सजल हो गये…
बस जो भी हूँ तुम्हारी वजह से हूँ |
मेरे सारे गीत, मेरे भाव, मेरा जीवन,
सिर्फ तुम्हें समर्पित क्योंकि तुमसे ही मैं हूँ |
तुम्हारे कर्मठ जीवन सरल, सहज स्वभाव का मैं अंश मात्र भी नहीं
पर तब भी तुम मुझमें विद्यमान हो |
और फिर लिखती हैं….
प्रिय! तुमको अभिनन्दन
तुम्हारी ही कलम से
तुमको सारे कर्म समर्पण
तदोपरान्त कवियित्री ने माँ सरस्वती की वंदना करते हुए अपनी भावाभिव्यक्ति इस प्रकार की है……….
दास्तां दिल की सुनाऊँ तेरे दर से कहाँ जाऊँ
तू तो माँ विद्या की देवी मैं कैसे तुझे रिझाऊँ
कवियित्री ने न केवल अपनी माँ को बल्कि दुनिया की हर माँ के लिए अपने भाव इस प्रकार प्रकट की है……
झोपड़े की माँ, महलो की माँ
हर माँ नींवाधार होती है
देश की भविष्यों की कर्णधार होती है
माँ तो बस माँ होती है
शब्दों में डूबकर स्याही के रंग को यूँ देखती हैं
डूब जाते हैं हम
शब्दों के संग
पंख लगा उड़ा ले जाते
कल्पना के संग
कोरे पन्नों पर
ये स्याही के रंग
स्व की तलाश करते हुए कहती हैं..
तलाश स्व से स्व की
क्यों नहीं हो पाती है
आरम्भ होकर भी
ठहर ठहर जाती है
कवियित्री समाज के प्रति जागरूक करते हुए कवि से गुहार लगाती हैं
हे कवि!
तुम कविता कहो
कुछ यथार्थ रचो
सामाजिक मुद्दे हों
कुछ उनके उत्तर हों
समाज को गढ़ो
कुछ यथार्थ तो कहो
कभी-कभी सामाजिक चिंतन करते हुए प्रश्न करती हैं
कौन है शिव कहाँ है शिव
जो गरल उतारे कंठ
और बन जाये नील कंठ
और फिर कहती हैं..
मंदिरों में दूध, दही चढ़ाने का क्या सिला है
कितने ही भूखों को निवाला भी नहीं मिला है
मानव जीवन को ईश्वर का उपहार मानते हुए समस्त मानव जाति को आह्वान करते हुए कहती हैं…..
मानव जीवन मिला है उसे सार्थक बनाएँ
आओ मानवता के लिए कुछ कदम बढ़ाएँ
इनकी रचनाओं में दर्शन भी दृष्टिगोचर होता है…
आना जाना इस आत्मा का
शरीर से शरीर का सफर
प्रकृति की रक्षण हेतु इनकी चिन्ता
मन मयूर कर रहा क्रन्दन
ढूढ रहा ऐसा नन्दन
वन उपवन से घिरी धरा हो
हरा भरा हो मधुवन
कवियित्री ने ऋतु रंग में रचनाओं को भिगोने की भरपूर कोशिश की है …..
नीम के पेड़ों पर झूले पड़े डाली डाली
गोरी की चूनर उड़े हरियाली हरियाली
चूंकि कवियित्री एक नारी हैं इसलिए इसलिए नारी के स्वरूप को शब्दों में बांधने की कोशिश करते हुए कहती हैं…
कैसे शब्दों में बांधूं नारी को
बांध नहीं पाती हूँ, शब्द नहीं दे पाती हूँ
कवियित्री रिश्तों को निभाने में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाने का प्रयास करते हुए कहती हैं …
एक स्त्री बूनती रहती
रिश्तों के ताने बाने
जीवन पर्यन्त
लेखिका घर में बहू के आगमन पर हम सभी को बहुत ही तथ्यपरक नसीहत देते हुए कहती हैं…
पौधों को भी जब जड़ से उखाड़
दूसरी जगह रोपते हैं
बड़े प्यार से हम अपना समय
पौधों को सौंपते हैं
ऐसे ही नवबधु के आगमन को
प्यार और सत्कार से निभाएँ
कवियित्री स्मृतियों का मंथन करते हुए कहती हैं
न कोई मुक्त कर पाया
न कोई मुक्त हो पाया
स्मृतियों पर नहीं होता
विस्मृतियों का साया
कवियित्री जीवन की पहेली में उलझी हुई कहती हैं..
जीवन की राहें बड़ी अलबेली
लगे हैं सदा मुझे नई पहेली
इस संग्रह में कवियित्री ने जीवन के हर पहलू को छूते हुए अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया है !
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि यह काव्य संग्रह सीप के मोती पठनीय तथा संग्रहणीय काव्य संग्रह है जिसका मूल्य मात्र 150 रुपये हैं!
हम कवियित्री आशा सिंह जी को हृदय से बधाई तथा यह संग्रह जन जन तक पहुंचे इसके लिए अनंत शुभकामना देते हैं!
किरण सिंह
सीप के मोती
लेखिका – डाॅक्टर आशा सिंह
प्रकाशक – सन्मति पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रिब्यूटर्स
बहुत खूब।
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बहुत शुक्रिया
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