करीब दस वर्षो के बाद मेरे मोवाइल पर अचानक एक काॅल आया! आवाज़ तो कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी फिर भी ठीक – ठीक नहीं पहचान पाई फिर उसने बताया कि मैं अमिता हूँ और अब तुम्हारे ही शहर में आ गई हूँ , मतलब मेरे पति का ट्रांसफर पटना में ही हो गया है यह सुनकर मेरा तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा… हो भी क्यों न..? आखिर वह मेरी सहपाठिनी थी , उसपर भी उसने जब बताया कि मम्मी भी आई हैं तब तो और भी खुशी हुई और मिलने की लालसा और भी बढ़ने लगी थी “क्योंकि उसकी मम्मी मेरी काॅलेज की प्रिंसिपल थीं! इसलिए मैं उन्हें खाने पर आमंत्रित किये बिना नहीं रह सकी !
……जब एक दिन कुछ बातों को लेकर अमिता से मेरा विवाद हो गया था चुकि वो कालेज की प्रिन्सिपल की बेटी थी तो थोड़ा रुआब दिखाने लगी थी…..! मैं ठहरी लडाकू जो हमेशा ही अन्याय के खिलाफ खड़ी हो जाती थी सो उस दिन भी सुना ही दी थी खरी खरी……..! हुआ यूँ था कि एन0 एस0 ( नेशनल सोशल सर्विस स्कीम में छात्राओं का चयन होना था ! कुछ बातों को लेकर मेरी और अमिता की अनबन हो गई थी ! अमिता बोली – मैं मम्मी से कह दूंगी कि तुम्हें एन ० एस ० एस ० ( National service scheme ) में नहीं लें
इस बात पर तो मुझे बहुत ही तेज गुस्सा आ गया, फिर भी गुस्से को कन्ट्रोल करके ही बोली तुम कौन होती हो बोलने वाली ..?.
होंगी मम्मी तुम्हारी घर में यहाँ तो काॅलेज की प्रिन्सिपल हैं और जैसे तुम स्टूडेंट हो वैसे मैं भी हूँ ! उस समय तो वह चुप रही क्यों कि सारी लड़कियाँ मेरे पक्ष में हो गयी थीं!
दूसरे दिन सुबह से ही मन में उल्लास और कौतूहल के भाव मचल रहे थे क्यों कि दहेज प्रथा पर वादविवाद प्रतियोगिता में मुझे बोलना था ! कॉलेज पहुंची तो देखा एन एस एस में नियुक्ति की सूची निकल गयी थी जिसमें मेरा नाम नहीं था..! अब तो मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था, अचानक मेरे मन से प्रिन्सिपल के लिए सम्मान का भाव उड़न छू हो गया था और मैं गुस्सा को रोकने में नाकाम हो गई! उस दिन मैं सीधे प्रिन्सिपल के ऑफिस में घुस गई थी और प्रिंसिपल की तरफ़ मुखातिब होकर सपाट से पूछ लिया था मैम मेरा नाम लिस्ट में ( एन एस एस में) क्यों नहीं आया ?
उन्होंने कहा आप लिस्ट निकलने से पहले मुझसे आकर क्यों नहीं बोलीं थीं!
मैं कुछ अचंभित होते हुए फिर प्रश्न कर बैठी मैम इंटरव्यू तो लिया गया था न फिर मिलने और कहने की क्या आवश्यकता थी?
और एन o एस o में तो जिस योग्यता की जरूरत होती है वह सब तो मुझमें है ही!
प्रिंसिपल ने बिना उत्तर दिये हुए मुझसे ही पूछ बैठीं थीं.. तो आप ही बताइये कौन अयोग्य है?
मैंने कहा मुझे क्या पता …. मैं तो इतना जानती हूँ कि मेरा होना चाहिए था!
फिर मैने अमिता से हुए विवाद का जिक्र उनसे कर दिया ! और आशंका जता ही दी थी कि इसी वजह से मुझे एन, एस, एस में नहीं लिया गया!
तब प्राचार्य ने आगबबूला होते हुए कहा कि आपके माता पिता आपकी बात सुनते कि नहीं……….? मैंने कहा अवश्य सुनते …..पर यदि आपके जगह पर होते तो कदापि नहीं…… तब प्राचार्या उल्टा मुझे ही समझाने लगी थीं… देखो किरण आप लड़की हैं…..कल को आपकी शादी होगी…… इस तरह के तेवर रहेंगे तो कैसे निभा पाइयेगा ससुराल में ?………. इस प्रकार की उन्होंने बहुत सारी दीक्षा दे डाली थी मुझे और अपनी बेटी (अमिता )को पूरी तरह से निर्दोष साबित कर दिया था बल्कि खूब तारीफ भी भी कर दिया था उन्होंने ” कि किरण आज जिस तरह से तुमने मुझसे बात किया न मेरी बेटी को हिम्मत नहीं है इतनी उँची आवाज़ में बात करने की !
मैं तो रूखे मन से अपने घर चली आई थी …… तब बहुत दुखी हुई थी अपनी प्राचार्या के अन्याय पूर्ण व्यवहार से…… और पूरा विवरण अपने पिता को सुनाया….! मेरे पिता अधिवक्ता थे सो उन्होंने मुझसे प्राचार्या के खिलाफ विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर को एक शिकायत पत्र लिखवाया था ! आक्रोश में लिख तो दिया था मैंने पर पोस्ट नहीं किया था ..!
अगले दिन सुबह प्राचार्या ने अपने ऑफिस में मुझे बुलवाया और बहुत सारी बातें अमिता के बारे में बताया कि अमिता को हम लोगों ने बहुत ही लाड़ प्यार से पाला है…. उसकी हर ख्वाहिश को पूरा किया है……. इस लिए थोड़ी जिद्दी हो गई है.!
उसके बाद दूसरी लिस्ट निकली थी जिसमें मेरा भी नाम था! उस दिन के बाद से मैं अमिता के
हरेक खामियों को नजरअंदाज कर दिया करती थी !
अमिता अमीर तो थी ही साथ ही काॅलेज की प्रिन्सिपल की बेटी भी…खूब सारे चाकलेट लाती थी काॅलेज और चॉकलेट खिला – खिलाकर दोस्ती कर लिया करती थी
फिर मेरी शादी हो गई उसके बाद नहीं मिल पाई थी .!
उसकी शादी का निमंत्रण आया था किन्तु जा नहीं पाई थी , लेकिन अन्य सहेलियों से उसके विवाह का विवरण सुनी थी ! काफी भव्यता से शादी हुई थी उसकी और उसका पति भी आई 0ए 0 एस 0 आॅफिशर था यह भी सुनी थी कि लड़का बहुत हैंडसम था !
आखिर प्रतीक्षा की घड़ियाँ खत्म हुई और आई अमिता सबके साथ !
कितनी बदल गई थी वह …. गोरी तो पहले भी नहीं थी , लेकिन अभी तो जैसे लग रहा था काली माँ की अवतार ही आ गयी हो , बड़ी बड़ी आँखें डरावने लग रहे थे, मोटी भी हो गई थी वह और ऊपर से बेतरतीबी से पहनी गई साड़ी में कुछ विक्षिप्त सी लग रही थी ! अगर उसने काॅल करके नहीं बताया होता तो मैं तो उसे पहचान भी नहीं पाती ! उसे देखकर तो मैं उसकी तुलना काॅलेज वाली अमिता से करने लगी थी सोंचने लगी क्या ये वहीं अमिता हैं…जिसका वार्डरोब तरह -तरह के नये – नये फैशन के महंगे कपड़ों, गहनों , महंगे मैचिंग सैन्डल्स, बैग्स आदि से सजा होता था ! कुछ देर के लिए तो मुझे उसकी दशा पर दया आ गयी थी!
इसके विपरीत उसका पति गज़ब का हैंडसम ” देखकर तो मेरे मन में यह विचार आ ही गया कि जरूर यह दूल्हा खरीद लिया गया होगा लेकिन मैं अपनी मनोभावनाओं को छुपाते हुए उन लोगों के स्वागत सत्कार में लग गयी!
खाने के दौरान बातों – बातों में अमिता तथा उसकी मम्मी मेरी प्रशंसा के पुल बांधे जा रहीं थीं…!.कभी मेरी , तो कभी मेरे घर की कभी मेरे बनाए हुए नाश्ते की तो कभी मेरे पति की तो कभी बच्चों की …! मैं उससे कुछ और लेने का आग्रह कर व्यन्जन परोसती रही , साथ – साथ अपनी प्रसन्नता भी व्यक्त करती रही !
लेकिन मेरी निगाहें अमिता और हसबैंड पर ही बार – चली जाती थी और उसके पति पर तरस आने लगता था!
अचानक मेरी प्रिन्सिपल मेरा घर देखने के बहाने मेरे साथ एकान्त में बातें करने की इच्छा इशारों में ही जाहिर की जिसकी तलाश तो मुझे भी थी! प्रिन्सिपल बोले जा रहीं थीं मैं सुने जा रही थी स्तब्ध…
मैंने कहा मैम इतना अच्छा तो अमिता का पति है और इतना बड़ा आॅफिसर भी फिर अमिता ने ऐसा हाल क्यों बनाये रखा है…
और प्रिंसिपल ने बहुत ही दुखी होते हुए मुझसे कहा किरण यही तो मेरी सबसे बड़ी भूल थी! अमिता का पति उसे दिल से अपनी पत्नी का दर्जा नहीं दे पाया , तुम सब को तो मैं समझाने में कामयाब हो गई थी लेकिन उसके पति को समझाने में असफल रही खैर गलती तो मेरी ही है मैं ही हमेशा अमिता को हर सही गलत में सपोर्ट करती रही …..बस तुम इस शहर में हो उसकी सुधि लेते रहना…… और मैं उसके आगे की अनकही कहानी को मैं पढ़ने की कोशिश कर रही थी!
अक्सर माता – पिता बच्चों की कमियाँ छिपाते हैं व् उनकी बढ़ा -चढ़ा कर प्रशंसा करते हैं , इससे नुकसान बच्चों का ही होता है | किरण जी आपने बहुत अच्छा संस्मरण साझा किया , जो माता -पिताओं को अपने व्यवहार के बारे में सोंचने पर विवश करेगा |
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बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी!
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