प्रेम एक मधुर सुकोमल तथा खूबसूरत एहसास है जिसे परिभाषित करना कठिन है फिर भी अपने अपने अनुभवों के अनुसार प्रेम को परिभाषित करने का प्रयास किया जाता रहा है..!
दार्शनिक आत्मा और परमात्मा के प्रेम का वर्णन करते हैं.. तो महा कवियों के संवेदनशील मन ने हृदय की सुन्दरता को महसूस कर प्रेम का चित्रण अपने अंदाज में किया है..!
प्रायः प्रेम में डूबे प्रेमी और प्रेमिका अपने अहम् को मारकर स्वयं को एकदूसरे में विलीन कर देते हैं और ये विलीन होना ही प्रेम का पहला लक्षण है । जो विलीन होने लगा है वो जान ले कि उसे प्रेम होने लगा है !
बाइबिल कहती है कि, “जो प्रेम में वास करता है वो परमात्मा में वास करता है ।” जो प्रेम में हो वो तो किसी और दुनिया का ही लगता है, जैसे कहीं और से आया हो; इस जगत का तो लगता नहीं ।
मनोवैज्ञानिक अपना अपना अलग तथ्य रखते हैं ! दार्शनिकों का नजरिया कुछ और ही होता है तथा हम आम जन भी अपने अपने तरीके से प्रेम को परिभाषित कर लेते हैं!
आम तौर पर विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है पर आकर्षण को प्रेम मानना सही नहीं होगा! आकर्षण और प्रेम में अन्तर को समझना होगा ! प्रेम का सम्बन्ध सिर्फ शारीरिक न होकर भावनात्मक और आत्मीय होता है इसलिए प्रेमी को अपनी प्रियतमा और प्रेमिका को अपना प्रीतम दुनिया का सबसे खूबसूरत सख्श लगता है! आकर्षण का सम्बन्ध शारीरिक होता है यही वजह है कि प्रेम हर परिस्थिति में उम्र के साथ धीरे-धीरे बढ़ता ही जता है जब कि आकर्षण चूंकि शारीरिक होता है इसलिए परिस्थिति अनुसार शारीरिक बदलाव और उम्र के साथ-साथ धीरे-धीरे कम होता जाता है परिणाम स्वरूप आकर्षण पर टिके सम्बन्ध आकर्षण खत्म होने की स्थिति में प्रायः टूट जाते हैं !
यहाँ कुछ अलग अलग विचारकों तथा मनोवैज्ञानिकों के अलग अलग मत हैं जो मुझे भी काफी अच्छे लगे !
एक प्रेमिका अपने प्रेमी का चेहरा ऐसे जानती है जैसे एक नाविक खुले समुन्द्र को।
हमारे जीवन में जो भी दृढ और स्थायी ख़ुशी है उसके लिए नब्बे प्रतिशत प्रेम उत्तरदायी है।
~ सी. एस. लुईस
किसी के द्वारा अत्यधिक प्रेम मिलने से आपको शक्ति मिलती है, और किसी को अत्यधिक प्रेम करने से आपको साहस मिलता है।~ लाओ जू
प्यार होते ही सभी कवि बन जाते हैं।
~ प्लेटो
मनोवैज्ञानिक वेंकर्ट का मत है – ‘प्यार में व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की कामना करता है, जो एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में उसकी विशेषता को कबूल करे, स्वीकारे और समझे। उसकी यह इच्छा ही अक्सर पहले प्यार का कारण बनती है ! जब ऐसा शख्स मिलता है तब उसका मन ऐसी भावनात्मक सम्पदा से समृद्ध हो जाता है जिसका एहसास तक पहले नहीं हुआ था !
लेकिन आमतौर पर प्रेम का जिक्र हो तो सबसे पहले हमारे जेहन में राधे कृष्ण की छवि उमड़ आती है! राधे कृष्ण का विवाह नहीं हुआ था फिर भी उनके प्रेम को न सिर्फ सम्मानित किया जाता रहा है बल्कि पूजा जाता है क्योंकि उनका प्रेम शारीरिक न होकर आत्मिक था!
एक पौराणिक कथा से भी राधे – कृष्ण के आत्मिक प्रेम की पुष्टि होती है…
जब कृष्ण को वृंदावन को छोड़ मथुरा जाना था।वृंदावन में शोक का माहौल हो गया। सभी गोपियाँ विरह वेदना में थीं किन्तु राधा पर कोई असर नहीं पड़ा! सभी गोपियों ने राधा से पूछा तुम्हारा हृदय किस पत्थर का बना हुआ है राधिके… तो राधा ने कहा मैं उनमें रहती हूं और वह मुझमें। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह कहां हैं और किसके साथ रहते हैं। वह हमेशा मेरे साथ हैं। कहीं और वह रह ही नहीं सकते।“
राधे कृष्ण के आत्मीय प्रेम को इस कथा के माध्यम से भी समझा जा सकता है!
एक बार राधा जी ने थोड़ा दुखी होकर कृष्ण से पूछा “हे कृष्ण आप तो समर्थ थे फिर यदि आपने आठ विवाह कर लिया था तो फिर मुझसे विवाह क्यों नहीं किया आपने जबकि आप मुझसे सबसे अधिक प्रेम करते हैं तो कृष्ण ने उत्तर दिया” हे राधिके हम तो दो आत्माएँ हैं जो एकाकार हो गये हैं , और विवाह तो दो शरीर का होता है! कहीं आत्माओं का विवाह होता है क्या..?
इस प्रकार हीर – रांझा, लैला मजनू आदि कितनी ही प्रेम कथाएँ हैं जो प्रेम को परिभाषित करतीं हैं!
शरीर , मन और आत्मा प्रेम के सतह हैं…प्रेम किसे किस सतह पर होता है यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है..!
आज भी प्रेम के प्रारूप तथा अभिव्यक्ति के तौर तरीके भले ही बदल गये हों , भले ही पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण हो रहा हो, लेकिन उनकी अनुभूतियाँ तो उतनी ही खूबसूरत होंगी, . चाहे कोई मैं तुमसे प्यार करता हूँ /करतीं हूँ कहे या फिर आई लव यू कहे या फिर शेरो शायरी के माध्यम से!
प्रेम की बहुत सुन्दर व्याख्या …
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बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी!
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काश ऐसे दिव्य लेखन का वरदान माँ हमें भी…. ………माँ कृपा…….
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अवश्य देंगी माँ….. बस कलम थाम लें और अपने अन्तर्मन की ध्वनि को शान्ति से सुने और अभिव्यक्त कर दें… धन्यवाद!
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Bhot Acha ha
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Kiya pyaar sab ko milta ha
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मिलता तो है लेकिन सभी समझ नहीं पाते
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Muje mila ha pr bo dur ha pr my usko bhot pyaar krta hu pr hm kbhi mil nhi skty yahi problem ha
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Bysy too myri friendship us sy kismet sy hue ha
Pr pta nhi ki hm kbhi mil pa a gy bi ky nhi
My kbhi usko mila nhi hu bss baat krty ha ek dusry ki problem share krty ha
Jb bo baat nhi krti too Acha nhi lgta
Kuch hi din Phly bo ge thi gao too baat nhi hue hmari too usny bolla ki my us sy baat kiya kru
Bo muje aapna Acha friend smj ti ha
Pr myry lia bo friend sy brkr ha
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हार्दिक शुभकामनाएँ आप दोनों को!
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My kiya kru smj nhi aata
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