खबरिया सत्य स्वप्न बलवन्त
पिया कहीं तुम ही तो नहीं बसंत..?
तेरे संग जिया हरसाए
रुनक झुनक पायलिया गाए
मन मयूर भी नाचन लागे
ऋतु सुहावन हर्ष अनन्त
पिया कहीं तुम ही………………?
जब कल्पना करूँ तुम्हारी
मुस्काए अधर हिय जुड़े हमारी
बहे बसंती बयार मन अंगना
खुशियों के पुष्प खिले अत्यंत
पिया कहीं तुम ही …………………….?
मिटे पिपासा जागी आशा
तुम ही पिया प्रीत परिभाषा
नयनों में स्वप्न सजाते सुन्दर
निराशाओं का कर अन्त
पिया कहीं तुम ही………………
भागे शिशिर तोहे देख सकुचाई
तेरे संग सब ऋतु मन भाई
पुरुष प्रकृति का नाता है कैसा
कवि मन प्रश्न करे ज्वलंत
पिया कहीं तुम ही ……………….
बहुत सुंदर रचना
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धन्यवाद वंदना जी
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