जीवन के गीतों के
आरोहों और अवरोहों में
मेरा समर्पण
पकड़
चल रही सांसों की
सरगम
निरन्तर
तुम्हारे मन्द्र सप्तक के
सात स्वर
मेरे तार सप्तक के स्वरों से
मिलकर
मध्य सप्तक को पकड़
गढ़ जाते हैं राग एक
सुन्दर
खनक कंगन
छनक पायल
तोड़ तुम्हारे नींद निशा में
भर श्रॄंगार रस
लिखा काव्य
मन से गढ़
सुन्दर
कुछ तुम कहकर
कुछ हम सहकार
प्रेम से पूरित
यह जीवन
चल रहा है
नदी प्रवाह – सा
निर्मल
सुन्दर.
प्रेम से पूरित
यह जीवन
चल रहा है
नदी प्रवाह – सा
निर्मल
सुन्दर….. बहुत सुन्दर कविता
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बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी
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