तू है कवि मैं कविता तोरी
मान सजन सुन बतिया मोरी
भाव उमड़कर शब्द मचलकर
देखो करते हैं बलजोरी
छनके पायल खनके चूड़ी
कहे जिया की.बात अधूरी
पलक बिछाए करे प्रतीक्षा
कजरारे से नयना मोरी
मिन्नत करती हूँ करजोरी
समझो प्रिय मेरी मजबूरी
चिट्ठी पढ़ते ही आ जाना
वर्ना लूंगी खबरिया तोरी
नहीं चलेगा नया बहाना
अब न कहो तुम है मजबूरी
छोड़ो भी अब बात बनाना
आओ बात है बहुत जरूरी
शानदार ,लुभावन मिन्नत😊😊
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बहुत खूब
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बहुत शुक्रिया वंदना जी!
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