प्रिय तुम रह न सकोगे मुझ बिन ,
मैं भी तुम बिन रह न सकूंगी |
छोड़ो भी अब झगड़ा रगड़ा ,
अब यह सब मैं सह न सकूंगी |
सपनों की दुनिया में प्रिय
तुमने भी जिया मैनें भी जिया
मधुर मधुर बातें अक्सर
तुमने भी किया मैने भी किया
प्रिय क्या हो तुम मेरे लिए
यह अधरों से कह न सकूंगी
प्रिय तुम रह न सकोगे मुझ बिन ,
मैं भी तुम बिन रह न सकूंगी |
तुमसे मिलकर ही जाना
कितना सुन्दर संसार है
इसीलिए प्रिय मुझको तेरा
हर तोहफा स्वीकार है
मेरी भावना तुम तक सीमित
तुम न कहो तो बह न सकूंगी
प्रिय तुम रह न सकोगे मुझ बिन ,
मैं भी तुम बिन रह न सकूंगी |
एक पल भी देखूँ न तुझे तो
बढ़ जाती बेचैनियाँ
प्यार मुझे करते हो प्रिय तो
मत करना मनमर्जियाँ
यही प्यार है सच्चा समझो
इससे ज्यादा कह न सकूंगी
प्रिय तुम रह न सकोगे मुझ बिन ,
मैं भी तुम बिन रह न सकूंगी |
बेहतरीन
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दिल से शुक्रिया!
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अद्भुत …. बेहतरीन ….
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धन्यवाद
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Bahut sundar👏👌
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बहुत शुक्रिया
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Reblogged this on charchithindiratn and commented:
“चर्चित हिन्दी रत्न” हैं… आज नहीं तो कल होंगे…!
बादलों की ओट में सितारे सदा तो नहीं रहेंगे!
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अत्यंत सुंदर… आभार।
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