मधुरिम मधुकर मधुबन गुंजन
हर्षित हो मन करता नर्तन
देखत स्वप्न नयन अति सुन्दर
ऋतु फागुन रंग लागे बरसन
होरी खेलत हैं ब्रज बाला
कृष्णा रंग में भीग गयीं हैं
कोरा मन रंगन अकुलाई
देख श्याम को रीझ गयीं है
प्रीत रंग अब बरसन लागे
भीगन को मन भया विवश
चाह रहा जी इन रंगों से
रंग लूँ मैं अपना अंतस
जुगलबंदी पी संग मन भाए
चलो सखी हम होरी गाएं
तन मन कोरा रह नहीं जाये
सभी रंगों में चलो रंगाएं
अद्भुत कविता। अत्यंत मनोरम।
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धन्यवाद
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bahut hi khubsurat kavita.
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आपने तो होली के रंगों में रंग दिया बहुत सुन्दर कविता , बधाई
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जरूरी है न… धन्यवाद वंदना जी!
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होली के रंग में सब मिल जाते है रंगों में रंग जाते हैं😃😃
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बिबिल्कु
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Bhaut khoob mam….
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धन्यवाद
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