भारत वर्ष उत्सवों का त्योहार है जहाँ हरेक पर्व को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाकर जीवन की उदासीनता को दूर कर नवीनता का संचार किया जाता है जिससे जीवन खूबसूरत लगने लगता है! जहाँ दीपावली जीवन में जगमगाहट लेकर आती है वहीं होली हमारे बेरंग जीवन में रंग भरकर मन में नव उमंग भर देती है!
शिव पुराण के अनुसार, हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तप कर रही थीं और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र देव का शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था क्योंकि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र के द्वारा ही हो सकता था इसलिए इंद्रदेव ने कामदेव को शिव जी की तपस्या भंग करने के लिये भेजा किन्तु इस बात से क्रोधित होकर शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया।
शिव जी की तपस्या भंग होने के पश्चात देवताओं ने शिव को पार्वती से विवाह के लिए मना लिया। इस कथा के आधार पर होली में काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध भी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ही किया था इसलिए बुराई के अंत की खुशी में होली मनाई जाने लगी ऐसी भी मान्यता है ।
होली का त्यौहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा हुआ है। बसंत में एक-दूसरे पर रंग डाल कर होली खेलना श्रीकृष्ण लीला का ही अंग माना गया है। मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगांव की लठमार होली जगप्रसिद्ध है। होली के एक दिन पूर्व अहंकार , , वैर-द्वेष , ईर्ष्या , तथा संशय की होलिका जलाकर विशुद्ध प्रेम प्राप्त किया जाता है!
प्रह्लाद और होलिका का प्रसंग तो हम सभी करीब – करीब हम सभी को पता है । माना जाता है कि होली पर्व का प्रारंभ प्रह्लाद और होलिका से ही जुड़ा हुआ है। विष्णु पुराण के अनुसार हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था, न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से, न पशु से। इस वरदान के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया था और विष्णु पूजा बंद करा दी थी , परन्तु पुत्र प्रह्लाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बहुत यातनाएं दीं परन्तु उसने विष्णु भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अत: दैत्यराज ने होलिका को प्रह्लाद का अंत करने के लिए प्रह्लाद सहित आग में प्रवेश करा दिया परन्तु होलिका का वरदान निष्फल सिद्ध हुआ और वह स्वयं उस आग में जल कर मर गई। तब से प्रह्लाद की इसी जीत की खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
जानकारी युक्त सार्थक पोस्ट , होली की हार्दिक शुभकामनाएं
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
धन्यवाद वंदना जी
पसंद करेंपसंद करें