प्रकृति और पुरुष विधाता के दो विशिष्ट सृजन में से स्त्री सबसे खूबसूरत सृजन है!
भारतीय संस्कृति में स्त्री को पुरुषों की अपेक्षा अधिक सम्मान दिया गया है ऐसा आदि-ग्रंथों में पढ़ने को मिलता है – यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमंते तत्र देवता | अर्थात जहाँ नारियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते है !
पूरे विश्व में आठ मार्च को महिलाओं के सम्मान में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है |
सर्व प्रथम महिला दिवस अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वाहन पर 28 फरवरी 1909 को मनाया गया था | अमेरिका में उस समय महिला दिवस का उत्सव मनाए जाने के पीछे महिलाओं को वोट देने का अधिकार हासिल करना था क्योंकि तत्कालीन परिस्थियों में अधिकांश देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था |
महिला दिवस की महत्ता तब और बढ़ गई जब रूस की महिलाओं ने 1997 में रोटी और कपड़े के लिए वहां की सरकार के खिलाफ़ आन्दोलन छेड़ दिया | जब यह आन्दोलन शुरू हुआ था तो उस समय वहां जुलियन कैलेण्डर के मुताबिक रविवार 23 फ़रवरी का दिन था जबकि दुनिया के बाकि के देशों में ग्रेगेरियन कैलेण्डर का प्रयोग किया जाता था जिसके अनुसार 8 मार्च का दिन था | इसलिए 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा |
धीरे-धीरे भारत में भी इसका अनुकरण होने लगा जिसकी आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि
हमारे भारतीय संस्कृति में तो नारी को वैसे भी सर्वोच्च स्थान प्राप्त है ! शक्ति की उपासना तो स्वयं श्री राम ने भी की थी जिसका हम आज भी अनुशरण कर वर्ष में दो बार नवरात्रि में स्त्री को देवी के रूप में प्रतिस्थापित कर पूजते हैं!
भारतीय संस्कृति में नारी की श्रेष्ठता का अनुमान देवताओं के नाम से पहले उनकी पत्नी का नाम लिये जाने से भी लगाया जा सकता है! लक्ष्मी-नारायण, गौरी-शंकर, सीता-राम, राधे-श्याम आदि इसके प्रमाण हैं! नारी को पुरुष की अर्धांगिनी का विशेषण देकर यह स्पष्ट किया गया है कि नारी के बिना पुरुष अधूरा है यहाँ तक कि कोई भी पूजा नारी की उपस्थिति के बिना सम्पन्न नहीं होता!
अनेक समानताओं के होते हुए भी नर – नारी सामर्थ्य और सक्रियता के क्षेत्र कई संदर्भों में भिन्न – भिन्न है इसलिए एकदूसरे से प्रतिस्पर्धा कुछ हास्यास्पद ही लगता है! भारतीय समाज में जहाँ पुरूषों को पौरुष, श्रम, कठोरता, बर्बरता और अधीरता का प्रतिमूर्ति माना गया है वही नारी को त्याग, दया, करुणा, ममता और धैर्य की प्रतिमूर्ति कहा जाता रहा है जो सत्य भी है !
जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी कामायनी में नारी के लिए लिखा है –
नारी तुम केवल श्रध्दा हो, विश्वास रजत नग पद तल में |
पीयूष स्रोत – सी बहा करों, जीवन के सुंदर समतल में ||
भारतीय नारी अपनी इसी विशेषता की वजह से अपने सभी रिश्तों को अटूट बंधन में बांधे रखने में सक्षम रहीं हैं! जहाँ पत्नी की भूमिका निभाते हुए माता सीता को अपने पति के साथ जंगल जाने का निर्णय लेने में एक क्षण भी नहीं लगा वहीं राधा एक प्रेमिका के रूप में अपने निः स्वार्थ, शाश्वत तथा पावन प्रेम के प्रतीक के रूप में कृष्ण से पहले पूजी जाती हैं!
इतिहास के पन्नों पर कितनी ही कहानियाँ अंकित हैं जहाँ भारतीय नारी स्वयं के अस्तित्व को समाप्त कर पुरुष को को सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाईं हैं इसीलिए यह कहा गया है कि प्रत्येक पुरुष के सफलता में एक स्त्री का हाथ होता है |
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या इतना पर्याप्त है स्त्रियों के लिए ! क्या वह हमेशा ही त्याग की प्रतिमूर्ति बन कर स्वयं के अस्तित्व को समाप्त कर अपनी इच्छाओं का दमन करतीं रहें! क्या देवी की संज्ञा दे देने मात्र से ही वह स्वयं को गौरवान्वित महसूस करें..? यदि हाँ तो कैसे और क्यों..?
हम नारी उत्थान की बातें तो करते हैं लेकिन सत्य यही है कि जो पुरातन भारतीय संस्कृति में हमें प्राप्त था वह सम्मान व अवस्था आज आज हमसे छिनता जा रहा है |
इसके बावजूद भी आज भारतीय नारी अनेक क्षेत्रों में आपने – अपने प्रयोजनों में कार्यरत होकर अपना वर्चस्व सिद्ध कर रही हैं |
लेकिन उनकी दशा पर तरस भी आती है जो घर तथा बाहर के कर्तव्यों को निभाते – निभाते यह भूल जातीं हैं कि उनका स्वयं के प्रति भी कुछ कर्तव्य है!
फिर भी यदि वर्तमान समय को हम नारी उत्कर्ष की सदी कहे तो गलत नहीं होगा |
हर स्त्री को अपने प्रति भी कर्तव्य याद रखने चाहिए | बहुत सुन्दर सार्थक लेख
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बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी!
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सार्थक और सुन्दर लेख…हार्दिक शुभकामनाएं💐💐
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हार्दिक धन्यवाद ममता जी
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हमारे शास्त्र चाहे जो कहते हैं किंतु समाज मे आज भी स्त्रियों की दशा में सुधार के लिए काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है।ये बात निर्विवाद है कि कोई भी दिन स्त्रियों के योगदान के बिना पूर्ण नहीं होता अतः एक दिन का महिला दिवस उस सम्मान का प्रतिपूरक नही जिसका कि स्त्री समाज हक़दार है।
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बहुत बहुत धन्यवाद आपको…. ब्लॉग पर स्वागत है!
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सार्थक लेख।असल में स्त्री ने स्वयं को कमजोर समझकर पुरुष पर आश्रित होना अपनी नियति मान लिया।अब धीरे धीरे चेतना जाग्रत हो रही है।
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