विषय है स्त्री विमर्श
ढूढ रही हूँ शब्द इमानदारी से
कि लिखूं स्त्रियों की असहनीय पीड़ा
दमन , कुण्ठा
कि जी भर कोसूं पुरुषों को
कि जिन पुरूषों को जानती हूँ उन्हें ही
कुछ कहूँ भला बुरा
पर
सर्व प्रथम पुरूष तो पिता निकला
उन्हें क्या कहूँ
वह तो मेरे आदर्श हैं
फिर सोचा
चलो आगे दूसरे को देखती हूँ
अरे वह तो भाई निकला
जिसकी कलाई पर राखी बांधती आई हूँ
प्रति वर्ष
अब आती हूँ पति पर इन्हें तो छोड़ूगी नहीं
सोचती हूँ कि महीने भर की पगार लाकर
दे तो दिया
फिर सब खर्च का हिसाब रखना भी तो
मुश्किल है यही लिख दूँ क्या..?
या फिर किटी पार्टियों में पहने गये
गहने कपड़े का हिसाब ही लिख दूँ
या फिर तुलना कर दूँ
अन्य
सहेलियों के पतियों से
कि कितने नाज नखरे उठाते हैं और
आप….
हैन
लिखना तो है ही
आखिर स्त्री विमर्श है
चलो बेटों को ही कोसती हूँ
पर क्या करूँ
मेरी तो आँखों पर पट्टी चढ़ गई
पुत्र में तो कोई दोष दिखाई ही नहीं देता
फिर किस पुरूष को कोसूं ?
किस तरह से कोसूँ ?
अजनवी पुरुषों को ?
समाज में नारी के प्रति जाग्रति लाना तथा नारी के अस्तित्व की, पहचान को स्थापित करने के प्रयास को ही नारीवाद अथवा नारी विमर्श कहा जाता है.
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सही बात है ममता जी
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समाज स्त्री -पुरुष की सही भागीदारी से चलता है कोसने से नहीं , जरूरत है हम परस्पर सहयोग की आशा करे न कि पुरुषों को कोस कर अलग -अलग राह चलें .. सार्थक रचना किरण जी
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बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी 😊
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