अपने परिजनों के अलावा भी हम जहाँ रहते हैं वहाँ रहने वाले लोगों के साथ भी कुछ सम्बन्ध जुड़ जाता है और उन सम्बन्धों की पुष्टि हेतु औपचारिक तौर पर ही सही सम्बोधन की आवश्यकता होती है! सम्बोधन गैरों को भी अपना बनाने का जज्बा रखता है इसलिए बहुत सोच समझ कर विशेष रूप से अपने उम्र का खयाल रखकर ही किसी के साथ सम्बन्ध जोड़ कर सम्बोधित करना चाहिए कि कहीं सम्बोधन सम्बन्धों में मिठास की बजाय खटास और कड़वाहट न घोल दे! सम्बन्ध जोड़ते समय अपना तथा सामने वाले के उम्र का खयाल तो रखें ही साथ ही इस बात का जरूर ध्यान रखें कि सामने वाला व्यक्ति आपके सम्बोधन को सहर्ष स्वीकार कर ले! सोच – समझकर कहे गये सम्बोधन जहाँ होठों पर खूबसूरत मुस्कान बिखेरते हैं वहीं बेवकूफी भरे जोड़े गये सम्बन्ध आपको हास्यास्पद बनाते हैं या फिर ऐसा भी हो सकता है कि सम्बन्ध जुड़ते – जुड़ते रह जायें!
आमतौर पर हमारे यहाँ प्रचलित सम्बोधन हैं दीदी , भैया – भाभी, आँटी – अँकल……
जिनमें दीदी और भैया अपने आप में स्वतंत्र, पवित्र तथा खूबसूरत सम्बोधन होते हैं जो बिना झिझक सम्बोधित किया जा सकता है फिर भी इस सम्बोधन में कुछ महिलाओं या पुरुषों को आपत्ति हो सकती है क्योंकि अधिकांश लोग खुद को औरों से कम उम्र का आँकते हैं ऐसे में उन्हें दीदी या भैया सम्बोधित करने में भी आपत्ति हो सकता है !
प्रायः यह भी देखा जाता है कि स्त्रियाँ तो पुरुषों के द्वारा दीदी सम्बोधन करने पर खुद को गौरवान्वित और सुरक्षित महसूस करतीं हैं लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर पुरुष स्त्रियों के द्वारा भैया का सम्बोधन सहर्ष स्वीकार नहीं कर पाते इसलिए स्त्रियों को इस बात की विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है !
अब आते हैं आँटी और अँकल पर ! यह सम्बोधन तो जितना ही अधिक खूबसूरत है उतना ही अधिक खतरनाक भी है इसलिए इस सम्बोधन से किसी को भी सम्बोधित करने से पहले कम से कम सौ बार तो सोचना ही चाहिए लेकिन दुख की बात यह है कि यह सम्बोधन सबसे अधिक प्रचलन में है! अच्छा भी लगता है अपने बच्चों से चार छः साल इधर-उधर के लोगों द्वारा आँटी अंकल का सम्बोधन लेकिन अपने से चार छः वर्ष इधर-उधर के लोगों द्वारा यह सम्बोधन कुछ गाली जैसा ही दुखदायी होता है भले ही कोई इस बात को उजागर न करे!
इसी सम्बन्ध में एक बात याद आ गई! मिसेज शर्मा की नई पड़ोसन मिसेज वर्मा उनसे मिलने आईं! खूबसूरत, छरहरी लगभग चालीस बयालिस वर्ष की पड़ोसन को देखकर करीब छियालीस सैंतालीस वर्ष की मिसेज शर्मा बहुत खुश हुईं कि चलो अब कोई मन लायक पड़ोसी आया है लेकिन जैसे ही उन्हें मिसेज वर्मा ने आँटी कहकर सम्बोधित किया तो उनकी सारी खुशी रफ्फूचक्कर हो गई, फिर भी समझदारी से काम लेते हुए उन्होंने इस बात को मन में ही दबाकर रख लिया कि चलो सम्बोधन में क्या रखा है ! लेकिन जब मिसेज वर्मा को उनसे करीब दस वर्ष छोटी पड़ोसन ने आँटी कहा तो वो इस बात की शिकायत मिसेज शर्मा से करने आईं जिसे सुनकर मिसेज शर्मा की हँसी रोके नहीं रुक रही थी!
मिसेज शर्मा को उनकी सहेलियाँ तथा परिजन भी बोलते थे कि आप मना क्यों नहीं करतीं कहाँ से आप उसकी आँटी लगतीं हैं इस बात पर मिसेज शर्मा हँस दिया करतीं थीं! सबसे मजा तो तब आया जब मिसेज शर्मा की छोटी बहन जो मिसेज वर्मा से उम्र में छोटी ही थी उसे मिसेज वर्मा मौसी कहकर सम्बोधित करने लगीं तब मिसेज शर्मा ने उन्हें अच्छी तरह से सम्बोधन का पाठ पढ़ाया!
एक बार तो एक कुछ साठ साल की एक महिला को उनकी तीस साल वाली पड़ोसन आँटी बोल दी तो वो नाराज हो गईं..!
यह सम्बोधन के चक्कर में कभी-कभी तो दिमाग चकरा जाता है एक बार तो मिसेज झा को उनकी बेटी के बराबर लडकी दीदी बोल दी तो वे मुझसे बोलीं कि बताइये तो ये लड़की मुझे किस हिसाब से दीदी बोली..? मैंने उनसे मजाकिया अंदाज में ही बोला कि सभी को आँटी कहने से प्राब्लम है और आपको दीदी से क्यों…. कहीं आपके पतिदेव को जीजा बना ले इसलिए तो नहीं डर रहीं हैं..?
ये सब तो हुई औरों की बात अब मैं अपनी भी कहानी सुना ही दूँ!
बात उस समय की है जब मेरी नई – नई शादी हुई थी, तब मैं अट्ठारह वर्ष की थी और चूंकि मायके और ससुराल दोनों ही जगह बड़ी थी इसलिए मायके में छोट – छोटे बच्चे भी दीदी और अन्य बेटी, बेबी, मुन्नी, आदि कहकर सम्बोधित करते थे और ससुराल में बड़े दुलहिन, तथा छोटे भाभी ही कहा करते थे लेकिन जब मैं पतिदेव के साथ आई जहाँ ये जाॅब करते थे वहाँ सभी बूढ़े बुजुर्ग भी मुझे मेम साहब कहकर सम्बोधित करते थे जो मुझे बहुत अटपटा लगता था! एक स्टाफ को तो मैंने टोका भी कि मुझे मेमसाहब मत बोला करें आप लोग तो अपनी ही दलील देकर मुझे समझा दिये! उस मेम साहब वाले सम्बोधन से जब मेरी नाराजगी का पता चला तो ससुराल के अन्य सदस्य भी मुझे मजाकिया लहजे में मेमसाहब ही कहने लगे ! एक मेरे ननदोई तो मुझे अभी तक भी मेम साहब ही कहकर बुलाते हैं!
सच में बड़ा लफड़ा वाला काम है यह सम्बोधन किसी को आँटी – अंकल से दिक्कत है तो किसी को भैया – भाभी से, किसी को दीदी – जीजा से तो किसी को……………….. इसीलिये भाई नाम से ही काम चला लेना चाहिए मेरी समझ से! वैसे मैं तो ए जी ओ जी से ही काम चला लेती हूँ जब तक कि अगला मुझे अपनी समझ से सम्बोधित नहीं करता है!
बहुत ही शानदार प्रस्तुति संबोधन विषय पर
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धन्यवाद ममता जी!
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Bahut khub
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शुक्रिया
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उचित संबोधन बहुत महत्वपूर्ण है … सार्थक आलेख किरण जी
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सही बात है वंदना जी… धन्यवाद!
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