प्यार से वे मुझे बहलाने लगे
कसम फिर से वे मेरी खाने लगे
रूठने का हुनर मैंने सीखा नहीं
लेकिन वे मुझे फिर मनाने लगे
उनका रंगों से कोई भी नाता न था
रंग मेरा वो पर अपनाने लगे
शायरी की समझ उनको थी न कभी
लिख – लिख कर मुझे ही वे गाने लगे
रिश्ते नाते निभाना न सीखे थे वे
रिश्ता पक्का वे मुझसे बनाने लगे
मानती है किरण पर यकीं है उन्हें
फिर भी अक्सर मुझे आजमाने लगे
ये तो भरोसा है…रूठना मनाना तो एक बहाना है इस रिश्ते की ये मिठाश है
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जैसे रूठना और मनाना प्यार की ख़ूबसूरती को बढ़ा देता है , वैसे ही इस कविता की खूबसूरती बढ़ गयी है … बहुत सुन्दर कविता
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बहुत धन्यवाद वंदना जी
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yeh kavita itni sundar hai. pyaar ke rang aapne shabdon se sajaa diye. dhanyavaad. 🙂
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बहुत ज्यादा ही खुशी हुई… धन्यवाद 😊
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mein hindi mein type karna seekhungi pur meri spelling ki galtiyaan aap maaf karna. 🙂
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