
वैसे तो मेरे पिता से मेरी अनेकों वार्तालाप हुई जो काफी शिक्षाप्रद, प्रेरणादायी,एवं आदर्श जीवनशैली से परिपूर्ण होती थी .! परन्तु उनसे हुई मेरी अन्तिम वार्तालाप जीवन और मृत्यु के मध्य कई प्रश्न छोड़ गये जिनका उत्तर मैं बार – बार ढूढने की नाकामयाब कोशिश करती रहती हूँ..
५ अगस्त २०११ शाम को करीब सात बज रहा होगा , मैं अपनी सहेली के गृह प्रवेश में जाने के लिए तैयार हो रही थी …..तभी मेरी बहन का मेरे मोवाइल पर कॉल आया ..पापा से बात कर लो पता नहीं क्यों आज बहुत सीरियसली बोले कि रीना से बात करने का मन कर रहा है ! इतना सुनकर कोई भी बेटी भला कैसे रह सकती इसलिए मैंने तुरन्त ही पापा को काॅल किया…… सच में पापा उस दिन काफी सीरियस लग रहे थे इतना भावुक उन्हें मैंने पहली बार सुना क्यों कि इतना भावुक होकर उन्होंनेक कभी किसी से भी बात नहीं की थी इसलिए मेरी घबराहट बढ़ रही थी, मन में तरह-तरह की आशंकाएँ घिर रहीं थीं फिर भी मैं पापा को सुन रही थी ! पापा कह रहे थे- का जाने काहे आज तोहरा से बतियावे के बड़ा मन करत रहे ( पता नहीं क्यों तुमसे बात करने का बड़ा मन हो रहा था ! ) मैंने कहा – प्रणाम पापा
लेकिन पापा लगातार बोले जा रहे थे! बंटी ( मेरा भाई , पापा का इकलौता पुत्र ) के त ज्ञान हो गईल बा , जेकरा ज्ञान हो जाला ओकरा मोह-माया ना रहेला आ जेकरा परमानन्द के प्राप्ति हो जाला ओकरा दुनिया से मोह माया ना रहेला ..एसे हम सोचतानी कि बंटी के सबकुछ देके कतहूँ चल जाईं ! ( बंटी को तो ज्ञान हो गया है और जिसको ज्ञान हो जाता है उसे मोह माया नहीं रहता है और जिसको परमानन्द की प्राप्ति हो जाती है उसे दुनिया से ही मोहमाया नहीं रहता है…इसलिए मैं भी सोच रहा हूँ कि सबकुछ बंटी को देकर कहीं चला जाऊँ ) इतना सुनकर तो मैं सोंच में पड़ गई कि आखिर पापा ऐसा क्यों कह रहे हैं तब मुझे लगा कि शायद बंटी उसबार रक्षाबंधन में लखनऊ से बलिया नहीं आ रहा था और पापा को उससे मिलने का मन कर रहा होगा इसी लिए ऐसा कह रहे हैं !फिर मैंने कहा कि आपको बंटी से मिलने का मन है तो उसे बलिया बुला लीजिए ….नहीं तो कहिए मैं ही कह देती हूँ कि वो बलिया आ जाये, और आपको मुझसे बात करने का मन है तो आप आ जाइए पटना ही ! पापा को तो जैसे लग रहा था कि पटना आने के लिए ही तैयार बैठे हों या शायद इसीलिए मुझसे बात करने का मन हुआ होगा उनका तभी तो पापा ने कहा कि एक शर्त पर मैं पटना आऊँगा कि तुम बंटी को भी पटना बुलाओगी.! तब मैं और भी सोच में पड़ गई कि आखिर पापा बंटी को बलिया क्यों नहीं बुला लेते इसलिए मेरे मुँह से अचानक ही निकल भी गया और मैं प्रश्न कर ही बैठी थी कि बलिया क्यों नहीं बुला लेते हैं बंटी को
तब पापा ने कुछ झुंझलाकर ही कहा तुम नहीं समझोगी बस तुम बंटी को पटना बुलाओ तभी मैं भी आऊँगा !
मुझे तो पापा और भाई का आना तो अच्छा ही लग रहा था लेकिन मैं पापा की ऐसी बातों से बहुत चक्कर में पड़ गई थी.. तभी मेरी माँ पापा से मोवाइल ले लीं और पापा को खाना देकर मुझसे कहने लगीं अब फोन रखो तुम्हारे पापा तब से बंटी को चाटे और अब तुम्हें चाट रहे हैं इतना कहकर मोवाइल रख दी !
उस दिन मुझे पार्टी में जाने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं हो रही थी लेकिन जाना पड़ा लेकिन मेरे दिमाग में पापा की ही बातें गूंज रहीं थीं इसलिए मुझे किसी से भी बात करने का मन नहीं हो रहा था! किसी भी तरह औपचारिकता निभाकर पार्टी से लौट आई मैं!
सुबह – सुबह भी मैं बलिया माँ से पापा के बारे में बात करने की कोशिश भी की पर सुबह – माँ व्यस्त थीं इसलिए ठीक से कुछ बात नहीं कीं और मैं पापा की बातों में ही उलझी रही .!
6 अगस्त 20 11 शाम को करीब पाँच बज रहा होगा ! मैं बालकनी में कुछ काम से गई तो मेरे पति की आवाज़ सुनाई पड़ी ..पतिदेव किसी से फोन पर बात कर रहे थे….
मेरे ससुर जी सीढ़ियों से गिर गये हैं, इसलिए बलिया से पटना आ रहे हैं, स्थिति काफी गम्भीर है किस नर्सिंग होम में ले जाना ठीक रहेगा ?
यह बात सुनकर मैं तो सन्न रह गई ..और पापा से हुई बातें मेरे कान में गूंजने लगी .फिर मैंने बलिया अपने मायके में कॉल किया.. और उधर से मेरे भतीजे ने रोते हुए कहा कि नाना जी गिर गए हैं कैसे ठीक होंगे
उसके बाद से तो मेरे दिल की धड़कने और भी तेज .हो गईं फिर जैसे ही मेरे पति घर में प्रवेश किये मैंने सीधे सपाट शब्दों में कहा..देखिये मुझे सब पता चल गया है इसलिए मुझसे कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं है. और मैंने उनसे पापा से बातचीत के प्रसंग को विस्तार से सुना दिया .! तब मुझे समझ आने लगा कि पापा बंटी को पटना बुलाने की बात क्यों कर रहे थे इसलिए .मैंने बंटी एवं सभी बहनों से भी पापा से हुई वार्तालाप को फोन से ही बता कर उन्हें पटना आने के लिए कह दिया !
रात करीब 11 बजे पापा पटना तो आए पर अचेतन अवस्था में.. किसी से बात नहीं कर पाए..! माँ कह रही थी कि रास्ते में भी बंटी को बुलाने की बात कर रहे थे..और अन्तिम बार राम राम कहकर दुबारा कुछ भी नहीं बोले !
डाक्टर ने पापा को देखकर बताया कि हाई ब्लडप्रेशर की वजह से ब्रेन का नस फट गया है बचने की उम्मीद नहीं है..!
सुबह तक सभी भाई बहन तथा परिजन भी पटना पहुंच गये! सबने पापा को वेंटिलेटर पर ही देखा! पापा को वेन्टीलेटर पर करीब चौबीस घंटे तक रखा गया जबतक उनकी सांसें चल रही थीं और फिर ईश्वर की मर्जी के सामने चलती किसकी है..! ७ अगस्त २०११ सुबह करीब सात बजे उन्होंने अन्तिम सांसे ली..!
पापा सचमुच बंटी के लिए सबकुछ छोड़ कहीं चले गए! .शान्ति का भाव स्पष्ट दिख रहा था उनके चेहरे पर! परमानन्द की प्राप्ति हो गई थी उन्हें! नहीं था उन्हें दुनियाँ से मोह माया ! उनके कहे एक एक शब्दों का अर्थ समझने लगी थी मैं !
आज भी मेरे मन में यह प्रश्न बार बार उठता है कि क्या दुनियां से जाने वालों को पहले ही ज्ञान हो जाता है ?
कई बार ऐसा होता है की दुनिया से जाने वालों को कुछ इशारा उनके अवचेतन में हो जाता है , ज्ञान प्राप्त होने ल;अगता है ,तभी ऐसे शब्द निकलते हैं पर सुनने वाला कोई समझ नहीं पाता है, जिसका विश्लेषण बाद में करने पर स्पष्ट पता चलता है … बहुत मार्मिक प्रसंग किरण जी …आँखे नम हो गयीं |
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सही कहा आपने वंदना जी….. कुछ हद तक तो आपने मेरे अन्तर्मन के प्रश्नों का हल कर दिया!
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