महसूस करती हूँ तुम्हें कितना कि तुमसे क्या कहूँ |
पड़ न जाये शब्द कहीं कम मैनें न सोचा कहूँ |
लिखकर उर के पन्नों पर अधरो को मैने सी लिया,
तुम तो समझते हो मुझे मैं न कहूँ या हाँ कहूँ!
तुम जब भी आ जाते हो हो जाता है उजियारा,
तुम ही बोलो तुमको प्रियवर सूरज या चँदा कहूँ |
धड़कनें आपस में मिलकर कह रहीं सुन लो जरा ,
धीरे-धीरे तुम चलो तब मैं भी तक धिन धा कहूँ |
तुम बिन क्या अस्तित्व मेरा रवि से पूछ रही किरण,
बोलो रवि कब बात हो कैसे आ कहूँ कब जा कहूँ ||
वाहः बहुत सुन्दर
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Behad hriday Graahi..
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बहुत बहुत धन्यवाद आपको
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