एक तरफ समाज की यह बिडम्बना है जहाँ दहेज आदि जैसे समस्याओं को लेकर महिलाएँ ससुराल वालों के द्वारा तरह- तरह से घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं , सिसकती है उनकी जिन्दगी, और कभी कभी तो क्रूरता इतनी चरम पर होती है कि छिन जाती है स्वतंत्रता और सरल भावनाओं के साथ-साथ जिन्दगी भी !
कड़े कानून तो बने हैं फिर भी स्त्रियों के साथ क्रूरता बढती ही जा रही है ! बढता जा रहा है उनके साथ दिनोदिन अत्याचार! नहीं सुरक्षित हैं उनके अधिकार !.चाहे जितना भी नारी सशक्तिकरण की बातें क्यों न हम कर ले ! इसका मुख्य कारण है नारी स्वयं ही स्वयं के लिए लड़ना नहीं चाहती क्योंकि उसे तो बचपन से ही त्याग, बलिदान, सहनशीलता, लज्जा आदि का पाठ पढ़ाया जाता है ! हर दुख सहकर, अपनी इच्छाओं का गला घोटकर, घर परिवार की खुशियों में खुश होने का दावा या फिर अभिनय करना ही उनकी नीयति बन जाती है! उसका कोई अपना घर नहीं होता ! मायके में ससुराल के उलाहने तथा ससुराल में मायके के उलाहने हमेशा ही उसे ही सुनना पड़ता है जबकि इसमें उसका कोई दोष भी नहीं होता फिर भी वह मायके और ससुराल के उलाहने और ताने सुनकर अपने में ही समेट लेती है दोनों ही घर की इज्ज़त की रक्षा करना उसका पहला कर्म और धर्म बन जाता है क्योंकि कि वह दोनों घर को ही वह अपना मानती है!
वहीं समाज का एक दूसरा सत्य पहलू यह भी है कि , बहुओं और बहुओं के मायके वालों के द्वारा भी उनके ससुराल वाले अत्यंत पीडित हैं जिसपर ध्यान कम ही लोगों का जा पाता है क्योंकि महिलाएँ कमजोर हैं तो उन्हें समाज की सहानुभूति ज्यादा मिल जाती है! जो कानूनी हथियार महिलाओं को सुरक्षा के लिए प्रदान किया गया है उसी कानूनी हथियार का दुरुपयोग करके ससुराल वालों को तबाह करके रखी हुई हैं ! झूठा मुकदमा दर्ज कराकर , धज्जियां उड़ा रही हैं ससुराल वालों की इज्जत प्रतिष्ठा की…….! शायद ऐसी ही स्त्रियों के लिए महाकवि तुलसीदास ने लिखा होगा …!
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी ]
ये सब तारन के अधिकारी ]]
ऐसी ही स्त्रियों की वजह से ,समस्त स्त्री जाति को प्रतारणा सहनी पडती है !
कुछ के तो घर टूट जाते हैं !
और कुछ लोग घर न टूटे , इस डर से अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अपनी बहुओं के प्रत्येक मांग को मानने को मजबूर हो जाते हैं !
इसमें सीधे साधे , शरीफ और संस्कारी लडके अपनी माँ , बहन और पत्नी के बीच पिस से जाते हैं ..! और सबसे मजबूरी उनकी यह होती है , कि वो अपने दुखों की गाथा किसी को सुना भी नहीं सकते क्यों कि पुरूष जो हैं ! .कौन सुनेगा उनकी दुखों की गाथा ….? कौन समझेगा उनके दुविधाओं की परिभाषा ?
माँ और पत्नी दोनों ही उनकी अति प्रिय होती हैं..! किसी एक को भी छोडना उन्हें अधूरा कर देता है !.यदि लडके के माता पिता समझदार एवं सामर्थ्यवान होते हैं , तो ऐसी स्थिति में दे देते हैं अपने अरमानों की बलि देकर कर देते हैं अलग अपने कलेजे के टुकड़े को , टूट जाता है घर , चकनाचूर हो जाता है माता – पिता का हृदय !
कुछ महिलाओं का तो मुकदमा करने का उद्देश्य ही ससुराल वालों को डरा धमाका कर धन लेने का होता है जिसमें उनके माता पिता का सहयोग होता है ! वो लोग अपनी बेटियों का इस्तेमाल सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की तरह करते हैं , और समाज का सहनुभुति भी प्राप्त कर लेते हैं !
चूंकि बेटे वाले हैं तो समाज की निगाहें भी उनमें ही दोष ढूढती है इसलिये सहानुभूति तो बेटी वालों को ही मिलेगी ऊपर से कानून का भय अलग !
यह सब देखकर तो मन बार-बार प्रश्न करता है कि आखिर क्यों बनती हैं महिलाएं नाइका से खलनायिका ?
क्यों करती हैं विध्वंस ?
क्यों नहीं बहू बेटी बन पाती ?
क्यों नहीं अपना पाती हैं वे ससुराल के रिश्तों को ?
क्यों बनती है घरों को तोड़ने का कारण ?
क्यों नहीं छोड़ पाती ईर्ष्या द्वेष जैसे शत्रुओं को ?
क्यों सिर्फअधिकारो का भान रहता है और कर्तव्यों का नहीं ?
इस प्रश्न का उत्तर देना होगा!
नारी तुम शक्ति हो , सॄजन हो पूजनीय हो , सहनशील हो मत छोडों ईश्वर के द्वारा प्राप्त अपने मूल गुणों को !नहीं है तुम्हारे जितना सहनशक्ति पुरुषों में इसे मानो , पुरुष नहीं कर सकते तुम्हारे जितना त्याग यह जानो ! पुरुष नहीं दे पाएंगे पीढी दर पीढी वो संस्कार जो तुम्हारी धरोहर हैं ! मत छोडो अपनी संस्कृति और सभ्यता!
माना कि अबतक तुम्हारे साथ नाइन्साफी होती रही है , बहुत सहा है तुमने, बहुत दिया है तुमनें. सींचा है तुमने निस्वार्थ भाव से परिवार , समाज तथा सम्पूर्ण सॄष्टि को चलो माना ! अब समाज की विचारधाराएं बदल रही है ..! तुम भी पूर्वाग्रहों से ग्रसित मत हो! मत लो बदला नहीं तो तबाह हो जाएगा सम्पूर्ण जगत, विनाश हो जाएगा सम्पूर्ण सॄष्टि का !
महाकवि जयशंकर प्रशाद ने तुम्हारे लिए कितनी सुन्दर पंक्तियों लिखी हैं
नारी तुम केवल श्रद्धा हो , विश्वास रजत नभ पग तल में
पीयूष श्रोत सी बहा करो , जीवन के सुन्दर समतल में ]]