घिरी आईं घटाएँ
घनन, घन, घन, घन
बरस गयो बरखा
छनन छन छन छन
चुपके से जा रही थी
साजन से मिलने
लाज के मारे
लगा पाँव हिलने
झनक गयो पायल
झनन , झन, झन, झन
बरस गयो…………….
लेने लगी मैं
जैसे ही बलइया
सइयाँ ने मेरी
पकड़ ली कलइया
खनक गयो कंगन
खनन , खन , खन, खन
बरस गयो………………..
जागी थी रात भर
भोर नींद आई
गुस्से से सासू जी
कर लीं लड़ाई
ठनक गयो माथा
ठनन, ठन, ठन, ठन
छनक गयो…………..
बहुत ही अच्छा।
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बहुत शुक्रिया…. स्वागत है रजनी जी
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