यदि हम जिंदगी और रिश्तों को एक दूसरे के पूरक कहें तो यह गलत नहीं होगा क्योंकि एक बच्चा दुनिया में कदम रखते ही रिश्तों के बंधन में बंध जाता है जो उसे पहचान, संरक्षण ,प्यार तथा अपनापन का आभास कराता है!
माँ बच्चों का रिश्ता तो नाभि नाल से जुड़ा होता है इसलिए माँ बच्चों के रिश्ते को न सिर्फ मनुष्य अपितु प्रत्येक जीव महसूस कर सकता है जिसे शब्दों में बांध कर परिभाषित करना निश्चित ही कठिन है! इसके अलावा भी दादा – दादी, नाना-नानी , चाचा – चाची, दीदी, भैया आदि रिश्ते भी चुम्बकीय शक्ति रखते हैं जो अपनी तरफ़ अनायास ही खींचते हैं जो जुड़ाव जीवन पर्यंत चलता रहता है!
जब बच्चा बड़ा होता है तो वह अपने आयु वर्ग के बच्चों के क्रियाकलापों से कुछ ज्यादा ही प्रभावित होता है इसलिये उनसे जुड़ने लगता है और ये रिश्ते भले ही खून के न हों लेकिन हृदय के सूक्ष्म सूत्र से बंध जाते हैं जो अनायास ही अपनी ओर खींचते रहते हैं !
हर रिश्ते अपने आप में महत्वपूर्ण होते हैं इसलिये किसी भी रिश्ते के बीच किसी भी रिश्ते को नहीं आना चाहिए और न ही तुलनात्मक रवैया अपनाना चाहिए!
उदाहरण के तौर पर यदि हमारे खून के रिश्ते माता-पिता, भाई बहन आदि महत्वपूर्ण हैं तो दिल के रिश्ते सखी सहेली, दोस्त – मित्र, प्रिय – प्रियतमा तथा पति – पत्नी के रिश्ते भी उतने ही गहरे तथ महत्वपूर्ण होते हैं !
कोई भी रिश्ता किसी भी रिश्ते की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकता इसलिए हम किसी भी रिश्ते से जुड़ते हैं तो उससे जुड़े हर रिश्तों का सम्मान करना चाहिए तभी हम अपने हर रिश्ते को दक्षतापूर्वक निभा पायेंगे!
जैसे – यदि माँ अपने बेटे से पूछे कि तुम्हारे लिए कौन महत्वपूर्ण है बीवी या मैं तो बेटे के लिए तो निश्चित ही इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन हो जायेगा क्योंकि उसके लिए माँ और पत्नी दोनों ही महत्वपूर्ण है तथा दोनों में से कोई भी एक दूसरे का स्थान नहीं ले सकता है!
उसी प्रकार रिश्तों वाला प्रश्न स्त्रियों से भी करना बेमानी है!
वैसे देखा जाये तो रिश्तों के पलड़े में स्त्रियाँ बार – बार तोली जातीं हैं क्योंकि वह अपना घर ( मायका ) छोड़कर किसी और घर ( ससुराल) आ जातीं हैं और उनके साथ मायका और ससुराल को लेकर काफी तुलनात्मक प्रश्न किया जाता रहता है जिससे वो अक्सर ही आहत होतीं रहतीं हैं!
करीब तेइस या चौबीस पूर्व की बात है जब मेरी दूसरी बहन की नई – नई शादी हुई थी और मेरे बहनोई मेरी बहन को मुझसे मिलाने के लिए मायके लेकर आये थे! लड़की हो या लड़का उसे अपने माता-पिता, भाई – बहनों से लगाव रहना तो स्वाभाविक ही है फिर भी मेरे बहनोई मुझसे प्रश्न कर बैठे कि आपलोगों का मायके की तरफ इतना ज्यादा जुड़ाव देखकर मैं सोचता हूँ कि यदि यहाँ कम नहीं होगा तो ससुराल में बढ़ेगा कैसे..?
तो मैंने भी तुरंत जवाब दिया कि जिन लड़कियों को अपने भाई बहनों से जुड़ाव नहीं होगा तो किसी अन्य से कैसे हो सकता है ? और यह जुड़ाव जबरदस्ती पैदा नहीं किया जा सकता है यह ससुराल के लोगों के व्यवहार पर निर्भर करता है!
इसी तरह लड़कों का भी अपने परिवार से जुड़ाव स्वाभाविक है इसपर प्रश्नचिन्ह लगाना अनुचित है!
अब आती है दिल के रिश्तों की बारी जो जितने ही खूबसूरत होते हैं उतने ही नाजुक , इसलिए इन रिश्तों में कुछ ज्यादा ही एहतियात बरतने की आवश्यकता होती है क्योंकि दिल के रिश्ते दिल टूटने पर अक्सर ही टूट जाया करते हैं!
दिल के रिश्तों में सबसे अहम रिश्ता होता है जिसे हम प्रेम कहते हैं जो कि सबसे खूबसूरत रिश्ता होता है, जिसकी खूबसूरती पर कितने ही गीत, गज़ल, शेर शायरियाँ लिखी जाती रही हैं और लिखी जाती रहेंगी फिर भी इसकी खूबसूरती का समुचित मूल्यांकन हो पाया है इसमें संदेह ही है! प्रेम की अनुभूति प्रेमी हृदय ही कर सकता है!
मित्रता भी दिल के रिश्तों के अन्तर्गत ही आता है जो खूबसूरत तो होता ही है साथ ही साथ नाजुक भी होता है जो विश्वास और स्नेह के अत्यंत सूक्ष्म धागे जे जुड़ा होता है इसीलिये प्रायः मित्र एक दूसरे की हृदय गति से अवगत होते रहते हैं! कहने को तो आदमी किसी को मित्र सम्बोधित कर देता है किन्तु प्रेम की भांति ही मित्रता भी हर किसी से नहीं होती! मित्रता का भाव भी प्रेम भाव की ही तरह प्रसन्नता तथा तुष्टि प्रदान करता है सिर्फ फर्क इतना ही होता है कि मित्रता में किसी तीसरे के आने से प्रसन्नता होती है तो प्रेम में दो के अलावा किसी भी तीसरे का स्थान नहीं रहता!
रिश्ते कितने ही घनिष्ठ तथा अभिन्न क्यों न हों
उन्हें स्पेस देना ही चाहिए ताकि उनका दम न घुटे!
उदाहरण के तौर पर संध्या और शालिनी बहुत घनिष्ट सहेलियाँ थीं ! वह कहीं भी एकसाथ ही जाया करतीं थीं तथा एक दूसरे से अपनी हर बात साझा कर लिया करतीं थीं !
फिर ऐसा हुआ कि संध्या को अलका से भी दोस्ती हो गई और वह उसके साथ भी समय बिताने लगी जिससे शालिनी दुखी होने लगी!
जबकि संध्या के मन में शालिनी के प्रति पहले ही जैसा भाव था!
इसी तरह जय तथा पिंकी के बीच प्यार का गहरा रिश्ता था! आॅफिस के बाद पिंकी हमेशा ही जय का साथ चाहती थी! जब कभी जय अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता तो वे परेशान हो जाती थी! पिंकी का यह व्यवहार जय को अपनी स्वतंत्रता में दखलंदाजी लगा और वह धीरे-धीरे पिंकी से कटने लगा!
रिश्तों में सबसे जरूरी है कि जो जैसे रूप में हों उन्हें वैसे स्वीकार करें क्योंकि यदि आप उन्हें बदलने की कोशिश करेंगे तो इसका दुष्परिणाम आपके रिश्तों पर पड़ेगा!
हाँ अपना सुझाव जरूर देना चाहिए लेकिन नहीं मानने पर आहत नहीं होना चाहिए!
अगर व्यवहारिक पक्ष देखा जाये तो रिश्ते गाड़ी की तरह होते हैं और रिश्तेदार गाड़ी के चक्कों की तरह! रिश्ते सुचारू रूप से चले इसलिए सभी चक्कों को सही रहना होगा! इसीलिए आवश्यकतानुसार बीच-बीच में चक्कों की हवा को सन्तुलित (मिलना जुलना , पत्राचार , बातचीत आदि ) रखना होगा !
चक्कों ( रिश्तों ) की पंक्चर रिपेयरिंग यदा कदा उपहारों के माध्यम से किया जा सकता है.!
एकतरफा रिश्तों को खींचना एक चक्के पर गाड़ी खींचने के समान है !
एक बार फिर कहना चाहूंगी कि हर रिश्ते अपने आप में महत्वपूर्ण होते हैं! किसी भी रिश्ते का किसी भी रिश्ते से तुलना नहीं की जानी चाहिए ! विश्वास जहाँ रिश्तों की नीव है वहीं शक और तुलनात्मक रवैया रिश्तो में जंग की तरह होते हैं जो रिश्तों को कमजोर कर देते हैं !
रिश्तों का आधार ही विश्वास है … बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया आपने किरण जी , साथ ही रिश्तों को स्पेस देना भी जरूरी है , ताकि रिश्तों में घुटन न हो |
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बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी…. 😊😊
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उम्दा प्रदर्शन किरण जी।
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संतुलित लेख ।
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बहुत बहुत धन्यवाद आपको
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रिश्तों में विश्वास बहुत जरूरी है ।रिश्ते का अर्थ बंधन नहीं ।
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जी बिल्कुल… आभार
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