लालिमा फिर छा रही है,
शाम ढलकर आ रही है |
चन्द्रमा से कर सगाई ,
चाँदनी इतरा रही है!
रागिनी आकर खुशी से,
गीत मंगल गा रही है!
कामिनी अपनी सखी को,
धीरे से समझा रही है |
प्रीत की कुछ रीतियाँ ,
वे प्यार से बतला रही है!
चाँद तो है हर किसी का ,
हक ज़रा जतला रही है!
जल बुझी तब चाँदनी पर ,
मन्द – मन्द मुसका रही है!
फिर आऊँगी करके वादा ,
यामिनी फिर जा रही है!
लो सुबह सौगात लेकर,
दामिनी फिर आ रही है!
श्वेत चमचम ओढ़ चादर ,
किरणें खिलखिला रहीं हैं!
बहुत सुंदर
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बहुत शुक्रिया
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बहुत बढिया।
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बहुत शुक्रिया
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बहुत ही सुंदर
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बहुत शुक्रिया
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वाहः बहुत ही खूबसूरत
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बहुत शुक्रिया ममता जी
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चांद तो हैं हर किसी का।बहुत ही खूबसूरत ।
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हार्दिक आभार 🙏🙏
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श्वेत चमचम ओढ़ चादर ,
किरणें खिलखिला रहीं हैं!…. वाह बहुत सुंदर किरण जी
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बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी
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Good poem
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Thanks
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