झूठी हो गर दुआएँ

झूठी हो गर दुआएँ तो फलतीं नहीं ,
पानी खारा हो तो दाल गलती नहीं |

तिल्लियाँ लाख माचिस की रगड़ो मगर,
हो नमी गर फिजाओं में जलती नहीं।

आह निकले भी तो कैसे किस जख्म पर,
दिल में जख्मों का जब कोई गिनती नहीं |

जल रहीं बस्तियाँ उठ रहा है धुआँ,
रुख हवाओं की फिर भी बदलती नहीं |

रूह भी सहमी – सहमी सी दुबकी हैं अब ,
मारे डर के कहीं भी भटकती नहीं |

लिख देती किरण मन की कुछ – कुछ यूँ ही ,

दिल समन्दर की लहरें सम्हलती नहीं |

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झूठी हो गर दुआएँ&rdquo पर एक विचार;

  1. पिंगबैक: झूठी हो गर दुआएँ – Gaun gram, shahar

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