दर्द पी लूंगी आहें भरूंगी नहीं,
जिंदगी से शिकायत करूंगी नहीं |
दूर रह कर भी खुश हो अगर मुझसे तुम,
लौट आने को फिर मैं कहूँगी नहीं
समझदारों का है ये शहर मान ली ,
मूर्खा ही मैं सही समझूंगी नहीं |
हूँ मैं बीमार मिलने की तुमसे है जिद ,
बिन देखे तुम्हें मैं मरूंगी नहीं |
इश्क है रोग मैंने भी माना है सच ,
भावनाओं में अब मैं बहूंगी नहीं |
बात सीधी कहूंगी मैं सच मान लो,
बेवजह झूठ को मैं मथूंगी नहीं ¦
उगो सूरज तभी तो खिलेगी किरण,
कैसे कह दूँ तपन मैं सहूंगी नहीं |
बहुत बढ़िया लिखा है ।🙏
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हार्दिक आभार
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दिल को छू लिया ।
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आभार 🙏
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Vaah
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बहुत सुंदर रचना किरण जी
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