लोक तंत्र का देखो मेला ।
आपस में ही हुआ झमेला।।
लड़ते हैं फिर भाई – भाई।
हुई देख बेचारी माई।।
कहीं टूटते रिश्ते नाते।
और कहीं फिर से जुड़ जाते।।
देखो लोगों खेल तमाशा।
पलट रहे हैं कैसे पासा।।
देख किरण यह सब घबराई।।
तभी लिखी मैंने चौपाई।।
क्या होगा कल किसने जाना।
हमको तो कर्तव्य निभाना।।
हृदय गवाही जिसको देता।
चुनो उसे ही अपना नेता।।
पूरी करना अपना कोटा।
नहीं डालना फिर से नोटा।।
जाति धर्म से ऊपर उठकर।
वोट डालना हे नारी नर।।
👌👌
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Bhut badiya mam
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