वर्तमान समय में साहित्य जगत में एक अभूतपूर्व क्रान्ति आई है जिसका एक कारण महिलाओं का साहित्य जगत में प्रवेश भी है। चुकीं महिलाएँ सम्बन्धों को जोड़ने में मुख्य भूमिका निभाती आईं हैं अतः साहित्य जगत में भी नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी को आपस में जोड़ने का काम कर रही हैं, जिससे आज की पीढ़ी का भी रुझान हिन्दी की तरफ बढ़ रहा है।
क्योंकि वह देखते हैं मेरी मम्मी, आँटी आदि की रचनाएँ या किताबें हैं तो वह न केवल पढ़ते हैं बल्कि तारीफों के साथ साथ सुझाव भी देते हैं तो उनके साथ बातचीत करने के लिए कई तरह के विषय मिल जाते हैं। साथ ही जिन्हें लेखन में अभिरुचि है वे प्रेरित होकर लिखने भी लगते हैं जो कि साहित्य जगत के लिए एक शुभ संकेत है।
ऐसे ही एक बार मैं अपनी बहन के बेटे के यहाँ गई तो घर में घुसते ही एक आलमारी पर मेरी नज़र पड़ी तो देखा कि मेरी लिखी पुस्तक को बड़े सलीके से सजाया गया है। यह देखकर
काफी खुशी हुई। फिर मैंने पूछ ही दिया कि सिर्फ सजा कर ही रखे हो या पढ़ते भी हो तो उन लोगों ने कहा नहीं मौसी पढ़ता भी हूँ आपने तो हमारी जनरेशन की समस्याओं को भी बहुत बारीकी से उठाया है।
यह देखकर अच्छा लगा कि हिन्दी साहित्य में भी अच्छी – अच्छी किताबें आ रही हैं।
इसके अलावा सत्तर के दशक से जो स्त्री विमर्श पर जो विराम लग गया था अब साहित्य के माध्यम से मुखर होकर सामने आ रहा है।
यह सत्य है कि साहित्य जगत में भी पुरुषों का अहम् आड़े आता है लेकिन आज पुरुष भी महिलाओं की भागीदारी को न केवल स्वीकारने लगे हैं बल्कि सराहने भी लगे हैं क्योंकि भले ही पुरुष लेखन में शब्दों की खूबसूरती हो। निर्भीकता बेबाकी हों, बाह्य दुनिया के अनुभव अधिक शामिल हों लेकिन लेखन में आत्मा एक स्त्री ही डालती है क्योंकि वह सृजन कर्ता है। स्त्रियाँ अत्यंत संवेदनशील होती है तो उनकी रचनाएँ मर्म को छू लेतीं हैं।
आज सोशल मीडिया के जरिये भी साहित्यकारों को एक खुला मंच मिल गया है जहाँ पाठकों को बहुत कुछ पठनीय वस्तुएँ आसानी से उपलब्ध हो पा रही हैं।
आज साहित्य का दायरा बढ़ा है क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत लोगों का भी रुझान लेखन की तरफ बढ़ रहा है तो साहित्य में विविधता देखने को मिल रही है साथ ही लोग उनकी रचनाओं से खुद को जुड़ा हुआ महसूस रहे हैं। क्योंकि अगर एग इंजीनियर कुछ लिखता है तो वह अपने छात्र जीवन से लेकर नौकरी तक के सफर की विवेचना बहुत ही बारीकी से
करता है। इसी तरह से गृहणियाँ घर परिवार से लेकर किचेन तथा रिश्तों की विवेचना बहुत अच्छे से करती हैं। अर्थात अब अलग से एक लेखक वर्ग नहीं है आज हर क्षेत्र के लोग लेखन से जुड़ कर साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं।
इस हिसाब से साहित्य का समाज से सम्बन्ध और भी गहरा हुआ है।
आज सबसे बड़ी समस्या बुजुर्गों को लेकर है कि उनका कोई सुन नहीं रहा है। इस विषय में मैं
एक बहुत खूबसूरत घटना बताना चाहूँगी। एकबार मैं किसी रिश्तेदार के यहाँ बैठी थी। तो वहाँ एक करीब सत्तर वर्ष की बुजुर्ग महिला मिल गयीं। जब उन्हें पता चला कि मैं लिखती हूँ तो वह अपनी कहानी सुनाने लगीं और मैं उन्हे पूरे मन से सुन रही थी क्योंकि मुझे तो एक अच्छी कहानी मिल गयी थी और उन्हे लग रहा था कि मेरा दुख दर्द कोई सुन रहा है तो यह भी एक उदाहरण है कि साहित्य से समाज का सम्बन्ध अच्छा होने का । इसीलिये मैं लेखक लेखिकाओं से आग्रह करूंगी कि जितना भी हो सके लोगों की सुनें इससे एक नया विषय मिलेगा और लेखन और भी व्यापक तथा मर्मस्पर्शी होगा।
वैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं तो फिर हम अगर दूसरा पहलू देखेंगे तो आज के साहित्य का स्तर गिरा भी है इसका एक कारण यह भी है कि साहित्य में अश्लीलता भी प्रचुर मात्रा में परोसी जा रही है जिससे कहीं न कहीं साहित्य तथा साहित्यकारों के प्रति समाज की गलत धारणा भी बन रही है। इसके निदान के लिए प्रकाशकों को ध्यान रखना होगा कि प्रकाशित होने योग्य वस्तुएँ ही प्रकाशित करें। साथ ही अच्छे और निश्पक्ष समीक्षकों की बहुत आवश्यकता है जो लेखक – लेखिकाओं को आइना दिखा सके।
अन्त में मैं मैथिली शरण गुप्त जी की पंक्तियाँ याद दिलाना चाहूँगी