तब मैं फेसबुक पर नई नई आई थी। मदर्स डे था और सभी फेसबुक फ्रेन्ड्स के बेटे – बेटियाँ बड़े ही खूबसूरत और प्यारे शब्दों में शुभकामनाएँ दे रहे थे जिसे पढ़कर मुझे खुशी तो बहुत हो रही थी लेकिन कहीं न कहीं मेरे मन के कोने में भी एक चाहत थी कि काश मेरे बेटे भी मुझे ऐसी ही कुछ शुभकामनाएँ भेजते।
सुबह से शाम हो गई मैं बार – बार फेसबुक खोलकर देख रही थी लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लग रही थी। मन को समझाने लगी कि सबकी अपनी – अपनी किस्मत होती है और सबके अपने – अपने तरीके होते हैं। फिर भी दिल समझने को तैयार ही नहीं था और मैं फिर फेसबुक खोल बैठी और जैसे ही मैं अपने बेटे कुमार ऋषि आनंद की पोस्ट पढ़ी मेरे आँखों से अश्रुओं की धारा बहने लगीं।
पोस्ट में लिखा था –
आई हैव अ प्राब्लम विथ द कांसेप्ट आॅफ मदर्स डे… आई ट्रूली विलीव दैट एवरी डे शुड बी मदर्स डे इन आवर लाइफ ( मुझे मातृ दिवस के सोच पर असहमति है। मैं इमानदारी से कहता हूँ कि हमारे जीवन का हर दिन मातृ दिवस है।