पंचर होकर सायकिल ,हुई लक्ष्य से दूर।
पुनः कमल खिलने लगा, हाथ हुआ मजबूर ।
हाथ हुआ मजबूर , हो गया हाथी घायल।
फूट गयी ललटेन, जीत जनता की कायल।
किरण राम का नाम, एक ऐसा है मंतर।
बिगड़ी भी बन जाय , भाग्य चाहे हो पंचर।।
पंचर होकर सायकिल ,हुई लक्ष्य से दूर।
पुनः कमल खिलने लगा, हाथ हुआ मजबूर ।
हाथ हुआ मजबूर , हो गया हाथी घायल।
फूट गयी ललटेन, जीत जनता की कायल।
किरण राम का नाम, एक ऐसा है मंतर।
बिगड़ी भी बन जाय , भाग्य चाहे हो पंचर।।