धुआँ – धुआँ वातावरण , दूषित हुआ समीर ।
धरती के उर में उठी , हल्की – हल्की पीर ।।
काट – काट जंगल किरण, लोग लगाये भीड़।
सोन चिरैया सोचती, कहाँ बनायें नीड़।।
गंगा मैया पावनी, धोती आईं पाप।
अब खुद मैली हो गईं, लगा उन्हें भी शाप।।
देख धरा की दुर्दशा , अम्बर हुआ अधीर।
बदरा नैना से रिसे , किरण पिघल कर पीर ।।
जाग जरा अब हे मनुज, कर ले सोच विचार।
डर प्राकृतिक प्रकोप से , मत कर अत्याचार।।