अब सताओ मत मुझे मेरे सजन।
अब सहा जाता नहीं मुझसे तपन।
सूर्य बरसाता है गोले आग के,
देखो कुम्हलाने लगे हैं ये चमन।
लोगे कितना तुम परीक्षा बोल दो।
दूँगी मैं क्यों की लगी तुमसे लगन।
बढ़ रही देखो मेरी बेचैनियाँ।
कुछ तरस खाओ धरा पर हे गगन।।
भेज दो बदरा से लिख – लिख चिट्ठियाँ
की धरूँ मैं धीर की मचले न मन ।।
देव सचिपति, सुरपति अब तो सुनो।
कर रही है प्रार्थना तुमसे किरन।।
khubsurat.👌👌
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शुक्रिया
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सूखती जाने लगी है भावनाये
कैसे बनाये कामनाओ के भवन
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खूब
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