पिता

उँगली थामे हाथ में, चलना पिता सिखाय।
चुन कांटे संतान के, पथ पर सुमन बिछाय।


पथ पर सुमन बिछाय, लक्ष्य वह दिखलाता है।
जीवन का संग्राम , जीतना सिखलाता है।
किरण पिता का प्यार, देखकर ममता पिघली।
करता है सर्वस्व, निछावर थामे उँगली।।

अन्दर से होता तरल, बाहर से मजबूत
बिल्कुल जैसे नारियल, या फिर कच्चा सूत

या फिर कच्चा सूत , भेद यह हमने जाना।
हरदम रहता हाथ , सफलताओं में माना।
पिता देखता स्वप्न , बने संतान सिकन्दर।
होता उर में स्नेह, किरण उनके भी अन्दर।।
माता जभी बिगाड़ती, देकर अधिक दुलार।
बन कर पिता कठोर तब, समझाता है सार ।
समझाता है सार , जिन्दगी का संतति को ।
बतलाता है युक्ति , पकड़ना काल गती को
सजा नैन में स्वप्न, किरण विश्वास जगाता।
बन जाता पाषाण, बिगाड़े जब – जब माता।।
संकट छोटा हो अगर, माँ चिल्लाते आप।
आया ज्यों संकट बड़ा, कहे बाप रे बाप।
कहे बाप रे बाप, बचा लो मेरे दादा।
सूझे नहीं उपाय, कष्ट जब होता ज्यादा।
पिता प्रकट हो आप, हटाता पथ का कंटक।
रखकर सिर पर हाथ, पिता हर लेता संकट।

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