मैं समझती हूँ
तुम्हारे भावनाओं को
तब से
जब से तुमने पूर्ण विश्वास के साथ
मुझे सौप दिये थे
अपना घर ,परिवार
और मैं
साम्राज्ञी बन बैठी
तुम्हारे सुन्दर साम्राज्य की
तुम्हारे हर निर्णय में
मेरा विमर्श
मेरे तुम्हारे बीच गहरी मित्रता का
प्रमाण
और तुम्हारे परिवार का
बेटी ,बहन सा
दुलार
फिर कैसे न करती मैं अपना सर्वस्व
समर्पण
भूल गई मैं तुम्हारे प्रेम में अपना
अस्तित्व
और निखरता गया मेरा
स्त्रित्व
खुश हूँ आज भी मैं
पर
ना जाने क्यों
लेखनी के पंख से उड़ना चाहती हूँ
मत रोको
मुझे
स्वर्ण पिंजर
नहीं
आसमान चाहिए