सखी पनघट पर मैं नहीं जाऊँगी ,
कन्हैया बड़ा छलिया है
बंशी बजाई के मोहे लुभावे
मधुर सुरीला राग सुनावे
खो जाऊँगी बंशी की धुन सुन
अपनी आँखों में सपने बुन
भूली अगर मैं पनिया भरन
तो मैं क्या – क्या बहाना बनाऊँगी
कन्हैया बड़ा…………….
यूँ भी भूल गई घर अँगना
सुन री सखी अब तू कर तंग ना
करो नहीं मोसे बलजोरी
अभी मोरी गगरी है कोरी
जो कान्हा ने फोड़ दिया तो
मैं किस किस को क्या क्या बताऊंगी
कन्हैया बड़ा……………..
मन मेरा वे चुराय लियो हैं
अपना जादू चलाय दियो है
जित देखूँ उत दिखते साँवरिया
नहीं सूझे मोहे मोरी डगरिया
सुध बुध अपना भूल गई मैं
ऐसे कैसे मैं संग चल पाऊँगी
कन्हैया बड़ा………………
मनमोहक 🙏♥️
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