एक जमाना था
जब मेंहदी की पत्तियों को
तोड़ कर
सिल पर महीन पीस कर
सीक के सहारे
हथेलियों पर उकेर दिये जाते थे
फूल पत्तियों के मध्य
पिया का नाम
और प्रिया करती थी
मेंहदी के सूखने का
घंटों इंतजार
तब की ताजी पत्तियों वाली मेंहदी
जल्दी सूखती नहीं थीं
और न ही जल्दी उतरती ही थी
रचती थीं
हथेलियों पर
धीरे-धीरे
पर आजकल की रेडिमेड मेंहदी
जितनी जल्दी चढ़ती है
उतनी ही जल्दी
उतरती भी हैं
बिल्कुल आजकल के
प्रेम की ही तरह
सच ही तो है
हथेलियों की मेंहदी
मापनी होती हैं
महबूब के मुहब्बत की
कि प्रेम का रंग
जितना गहरा होगा
उतनी ही रचेगी मेंहदी
nice poyem
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Bahut khoob
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