
मधु अपने वीरान जिंदगी में फिर से खुशियों की आहट महसूस कर रही थी, रोम – रोम प्रफुल्लित हो रहा था, मन में फिर से जीने की लालसा जाग उठी थी, मानो उसका मृत देह जो प्रखर के दुनिया से जाने के बाद से जिंदा लाश बन गयी थी फिर से उसमें किसी ने प्राण फूंक दिये हो ! महीनों बाद मधु खुद को आइने में देख रही थी! आह कितनी बदल गयी हूँ मैं सोचकर दो बूँद अश्रु छलक पड़े उसके गालों पर और वह अपने
अश्रुओं को पोंछते हुए दृढ़ होती हुई स्वयं को समझाती है कि मधु तुम मरने में तो असफल रही अब तो तुम्हें हर हाल में अपने बच्चों के लिए जीना होगा क्यों कि अब तो तुम्हें माँ – बाप दोनो की ही भूमिका निभानी पड़ेगी जब तुम ही हिम्मत हार जाओगी तो इन मासूमों का क्या होगा…!
और फिर मधु कुछ दृढ़ होती हुई अपनी संगीनी कलम को पुनः थाम ली! भर दी कलम में लाल महावर जो कभी पैरों में लगाया करती थी! और करने लगी श्रृंगार रस में भीगी संयोग और वियोग की अभिव्यक्ति अपने काॅलेज के फ्रेन्ड आभास के आग्रह पर जो उसके डरावने एकान्त में अपने मैसेज से या फिर काॅल कर के उसकी उदासियों को दूर करने की कोशिश करता था !
बहुत दिनों तक उसकी अभिव्यक्तियाँ भी उसके वैधव्य की ही तरह डायरी के पन्नों में दबी हुई घुटन महसूस कर रहीं थीं लेकिन समय के साथ -साथ, धीरे-धीरे वह मुखर होने लगीं जिसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से नहीं रोक पाई अपने आप को मधु!
बहुत दिनों के बाद मधु का पोस्ट पढ़कर खुश हो गया आभास ! उसकी कोशिशें कामयाब होने लगीं, अब तो आभास की लेखनी में भी अचानक धार आ गया और वह खूबसूरत कविता गढ़कर पोस्ट कर दिया जिसपर मधु ने कविता के माध्यम से ही खुलकर टिप्पणी की ! यह क्रम चलता रहा ! मधु जितनी ही खूबसूरत टिप्पणी करती अगले दिन आभास और भी खूबसूरत गीत लिख देता! आभास के गीत से प्रेरित होकर मधु की लेखनी को भी रफ्तार मिल जाती और वह गढ़ने लगती नव नव काव्य, फिर तो छा गई मधु सोशल मीडिया पर, होने लगे उसकी रचनाओं के चर्चे लेकिन मधु की लेखनी तो हमेशा ही सिर्फ आभास की टिप्पणियों की प्रतीक्षा करती थी इसलिए जब तक आभास की टिप्पणी नहीं आ जाती मधु की ऊंगुलियाँ हमेशा ही कम्प्यूटर या फिर मोवाइल को टिप टाॅप करती रहती थी!
आभास भी महसूस कर रहा था मधु की रचनाओं में खुद को! उसे महसूस होने लगा प्रेम, चाहतें कल्पना की उड़ान भरने लगीं लेकिन रचनाओं के अलावा उसने कभी भी हिम्मत नहीं जुटाई कि मधु से अपने प्रेम का इज़हार कर सके !
कभी-कभी तो मधु की दशा देखकर वह अपनेआप को ही कुसुरवार समझने लगता था कि काश यदि मैंने अपने प्रेम का इजहार मधु से पहले कर दिया होता तो आज वह प्रखर की विधवा नहीं उसकी पत्नी होती ! नहीं हुआ होता उसका दिल के मरीज प्रखर से विवाह आदि आदि सोचकर वह परेशान हो उठता था!
आभास कई बार सोचता अपनी दिल की बातें मधु से कहने की लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाता था, लेकिन एक दिन फरवरी महीने के हफ्ते में चलने वाले प्रपोज डे के दिन वह बोलने को ठान ही लिया….
तथा मधु के इनबाक्स में लिखकर भेज ही दिया
आई लव यू
मघु का भी रिप्लाई आया
आई लव यू टू
फिर क्या आभास का मन मयूरा झूम उठा, उसका मन कल्पना के घोड़े पर सवार धरती से लेकर अम्बर तक को नापने लगा…! साथ ही उसकी अभिव्यक्तियाँ भी निखरने लगीं, शब्द खनके लगे, भाव महकने लगे और आ गया चौदह फरवरी जिसका प्रेमी युगल बेसब्री से इंतजार करते हैं , या यूँ कहें कि आज कल का फैशन बन गया है वेलेंटाइन डे!
आभास मधु से रेस्तरां में आने का आग्रह किया जिसे मधु ने सहर्ष स्वीकार कर लिया! अब तो आभास का विश्वास और बढ़ने लगा और खरीद लाया मधु के लिए एक खूबसूरत हीरे की अंगूठी !
मधु भी समय से ही रेस्तरां पहुंच गई जैसे ही आभास की निगाहें उसपर पड़ी तो थोड़ा सकुचाई मधु! नीले रंग के सूट में और भी खिल उठा था मधु का रूप!
मधु के बैठते ही आभास उसे एक फूलों का गुलदस्ता थमाया जिसे मधु ने लेकर उसे मुस्कुराते हुए थैंक्स कहा!
आभास को अपना सपना साकार होते हुए दिखाई दे रहा था, वह अपने कल्पना के घोड़े पर सवार मधु को दुल्हन बनाकर भ्रमण करने लगा था , फिर अचानक तंद्रा टूटी और मेनू बुक मधु को थमाकर मेनू डिसाइड करने को कहा!
मेनू आर्डर करने के बाद आभास अपने पर्स में से अंगूठी निकालकर सीधे मधु से पूछ बैठा
विल यू मैरी मी
तब तक मधु के बेटे आयुश का उसके मोवाइल पर काॅल आ गया मम्मी कब आओगी मुझे अकेले बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है..! तभी मधु के मन में अचानक वात्सल्य भावना प्रखर हो गई जो कि हरेक भावनाओं पर भारी पड़ गया
मधु अवाक सी बुत बनी आभास को एकटक देखने लगी, उसके मुंह से एक भी आवाज़ नहीं निकल रहा था, आँखों से आँसू टप टप टपकने लगे, वह समझ ही नहीं पा रही थी कि हाँ कहे या ना कहे ..!
आभास उसकी परिस्थिति को भापते हुए क्षमा सहित बोला..देखो मधु कोई जबर्दस्ती नहीं है, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ इसलिए तुम्हें इस स्थिति में नहीं देख सकता और प्यार तो तुम भी मुझसे करती ही हो न जिसे मैं हमेशा महसूस करता हूँ तुम्हारी तुम्हारी आँखों में, तुम्हारी अभिव्यक्तियों में…….. !
बात तो सच भी था लेकिन मधु को उस समय झूठ का सहारा लेना पड़ा इसलिए अचानक मधु के कण्ठ से स्वर फूट पड़े …
हाँ हाँ आभास वही तो , अभिव्यक्तियों में.. जो कि एक कोरी कल्पना मात्र है, तुम तो लेखक हो न आभास, फिर तुम………… हाँ तुम हो मेरे कल्पना के राजकुमार हो ..!
आभास मधु को चुप सुनता रहा… अंगूठी को पर्स में वापस रखकर पर्स में से निकालकर मधु को अपना रुमाल थमा दिया!
बहुत सुंदर
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बहुत शुक्रिया 😊
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गजब👍
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धन्यवाद 😊
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