दोस्ती
तोल कर मैंने देखा, हरेक रिश्ते को ,
दोस्ती से भला कुछ लगा ही नहीं।
है हृदय से जुड़ा, खूबसूरत बड़ा,
राज जिससे हृदय का छुपा ही नहीं।
स्वार्थ से है रहित, स्नेह से है भरा,
इसीलिए तार दिल का, स्वयं ही जुड़ा।
झंकृत हो हृदय, सुन्दरम् छेड़े लय,
स्नेह का फिर सफ़र ये रुका ही नहीं।
तोल कर मैंने देखा हरेक…….. …
बढ़े उससे खुशी, दुख हरे वह सभी,
साथ चाहे हृदय उसका, हरदम तभी।
अच्छे हों या बुरे, बात हर वह सुने,
उससे कुछ कहने से दिल, डरा ही नहीं ।
तोल कर मैंने देखा हरेक………….
पाक एहसास है, साफ़ जज्बात है,
उसकी बातों में कुछ तो, अलग बात है।
कितना भी कहूँ, कितना भी गुनूँ,
कहने से मगर दिल, भरा ही नहीं।
तोल कर मैंने देखा हरेक………….
उससे मिलता है दम, भूल जाता है गम ,
इसलिये मुझको होता है, कुछ – कुछ भरम्।
समझे जो मरम, मित्र मेरा परम्,
तो लगे वो कहीं, खुद खुदा तो नहीं।
तोल कर मैंने देखा हरेक………….