इश्क का रिश्ता वे भी निभाते रहे,
ख्वाबों में ही सही आते-जाते रहे।
मैं तो सच के सहारे ही स्थिर रही,
पर यकीं वे मेरा डगमगाते रहे।
गीतों में ढाल उनको मैं लिखती रही.
और वे उसको पढ़ गुनगुनाते रहे।
मेरे हिस्से में आई उदासी भले ,
वे हमेशा मगर मुस्कुराते रहे।
यूँ ही कटते रहे दिन उम्मीदों तले,
ख्वाब भी तारे बन झिलमिलाते रहे।
किया मैंने यकीं उन पे बन्द आँखों से,
लेकिन वे मुझे आजमाते रहे।
हूँ किरण मैं हमेशा बिखरती रही,
फासले दरम्यां तड़पाते रहे।
