दूसरी पारी – बना रहे संघर्ष का जज्बा
अभी कुछ दिन पहले अमेजॉन पर मैंने पुस्तक दूसरी पारी देखी और इसके शीर्षक को देखकर ही इसे पढने की इच्छा हो गई। मैंने तुरन्त अमेज़न को पुस्तक भेजने का अनुरोध किया और कुछ ही दिनों में पुस्तक मेरे पास आ गई।
ये पुस्तक वंदना बाजपेई जी और किरण सिंह जी के सम्पादन में एक आत्मकथात्मक संस्मरण संग्रह है। ये महिला रचनाकारों के जीवन की सच्ची कहानियों को उन्हीं के शब्दों में एक प्रेरणादायक संस्मरण संग्रह है। जो हर महिला को किसी न किसी तरह प्रेरणा देकर प्रभावित करेगा।
इस किताब की भूमिका वंदना बाजपेयी जी द्वारा लिखी गई है। भूमिका की ये पंक्तियाँ मुझे बहुत अच्छी लगी।
“सफलता का तो कोई पैमाना नहीं होता, फिर भी किसी ने कहाँ से शुरू किया और कितने कदम आगे चला ये ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। मेरे विचार से A से G तक पहुँचा व्यक्ति X से Z तक पहुँचे व्यक्ति से कहीं ज्यादा सफल है।”
इस पुस्तक में सर्वप्रथम किरण सिंह जी का संस्मरण है, जो एक गृहणी के अपने सपनों को पूरा करते हुए साहित्य जगत का हस्ताक्षर बनने की यात्रा है, जो बेहद प्रेणादायक और प्रभावशाली है। उनकी लेखनी के पंख को यूं ही उड़ान मिले।
अर्चना चतुर्वेदी जी, जिन्हें मीडिया जगत में कार्य का अनुभव है तथा साहित्य के कई पुरुस्कारों से सम्मानित हैं। अर्चना जी ने बहुत सुंदर तरीके से अपने संघर्ष को शब्द दिया है।
अनामिका चक्रवर्ती जी, जो एक डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन बारहवीं के बाद ही विवाह हो जाने के बाद गृहस्थ जीवन के साथ स्नातक करने और साहित्य जगत में एक मकाम हासिल करने के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी है।
सीमा भाटिया जी, जिनका एक प्राध्यापिका बनने का सपना था। गृहस्थ जीवन में प्रवेश, कुछ स्वास्थ्य व पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के साथ साथ सीमा जी की द्वितीय पारी सभी महिलाओं को प्रोत्साहित करने वाली है।
पूनम सिन्हा जी की अपनी एक अलग ही कहानी है। बचपन से मन में जो छटपटाहट थी, उसे उन्होंने स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते समय रचनाओं का रूप दिया और एक मकाम हासिल किया।
छाया शुक्ला जी जो अध्यापन क्षेत्र से हैं, उनकी लेखनी का सफर भी कई संकलनों और सम्मानों के साथ शानदार है।
संगीता कुमारी जी विवाह के पश्चात अपने दृढ़ संकल्प के साथ अपनी शिक्षा जारी रखते हुए निरन्तर साहित्य की सेवा करती रही।
आशा सिंह जी का बचपन से ही पुस्तकों से प्रेम उन्हें उनके जीवन की दूसरी पारी में लेखनी की तरफ खींच ले गया और उनकी एक पुस्तक डॉ सिताबो बाई प्रकाशित हो चुकी है।
रीता गुप्ता जी को बचपन से ही डायरी लिखने का शौक था। विवाह के पश्चत्त इग्नू से आगे की शिक्षा प्राप्त करते हुए अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में लिखना आरम्भ किया। आपका कहानी संग्रह इश्क के रंग हजार प्रकाशित हुआ है।
रेखा श्रीवास्तव जी का लेखन का सफर 10 वर्ष की उम्र से ही शुरू हो गया। कई पत्र पत्रिकाओं में सामाजिक रूढ़ियों और नारी शोषण पर स्तम्भ लिखे। आपके कई कविता संग्रह एवं कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। सोशल मीडिया से जुड़कर ब्लॉग्स द्वारा भी आप कई मुद्दों पर लिखती हैं।
पूनम आनन्द जी बचपन से ही साहित्य के सम्पर्क में थी। तथा विवाह पश्चात भी अनुकूल स्थितियां मिली। आपके कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं तथा कई पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया है।
अन्नपूर्णा श्रीवास्तव जी आज एक शिक्षिका, साहित्यकार, पत्रकार के साथ साथ एक समाज सेविका भी हैं। ये मकाम उन्होंने संघर्षो से पाया है और आज भी संघर्ष करते हुए अपने पथ पर अग्रसर हैं।
सिनीवाली शर्मा जी के कई पत्र पत्रिकाओं में कहानियां एवं व्यंग्य प्रकाशित होने के साथ कहानी संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनका कहना है कि कोई भी राह आसान नहीं होती, हाँ ये जरूर है कि उनके पास हौसलों के पंख होते हैं।
डॉ पुष्पा जमुआर जी बचपन से ही अध्ययन के साथ साथ कविताओं का सृजन करती थी। 18 वर्ष की उम्र में विवाह होते ही पढ़ाई छूट गई। अपने दृढ़ संकल्प से 12 वर्षों बाद पुनः पढ़ाई प्रारम्भ की और हिंदी में एम ए किया। आपके कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं तथा कई प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मानित हो चुकी हैं।
वंदना बाजपेई जी को बचपन से ही साहित्य से संबन्धित पत्रिकाएँ पढ़ने का शौक था। CPMT की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बावजूद वाराणसी जाने की सहमति न मिलने के कारण अपने शहर कानपुर से ही ऐम एस सी करी । विवाह के वर्षों बाद पुन: डायरी उठाई तो निरन्तर साहित्य रचना में अग्रसर रही। जिसमें कई पड़ाव आये, साहित्य और सम्पादन के क्षेत्र में कई नई बातें सीखकर आज एक मुकाम हासिल किया है।
वंदना बाजपेई जी और किरण सिंह जी द्वारा सम्पादित ये संग्रह बहुत सुन्दर और सार्थक प्रयास है। सभी संस्मरण बहुत प्रेरणादायक हैं। गृहस्थ जीवन में आने के बाद अपने सपनों को साकार करने की ललक और उन्हें साकार करते हुए एक मुकाम हासिल करना, बहुत ही प्रभावशाली और प्रेरणादायक है। माना आज का परिवेश कुछ अलग है, लेकिन अभी भी लोग X से Z तक कदम बढ़ाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। इस सराहनीय प्रयास के लिए आप सभी का बहुत बहुत आभार।
इन संस्मरणों से गुजरते हुए लग रहा है कि जैसे कहीं न कहीं खुद को ही पढ़ रहे हों।
बहुत सुंदर प्रेरणादायक संग्रह हेतु सभी रचनाकारों का आभार और शुभकामनाएं।
लीना दरियाल
दूसरी पारी (आत्मकथात्मक लेख संग्रह)
सम्पादक -किरण सिंह व वंदना वाजपेयी
प्रकाशक -कौटिल्य बुक्स
पृष्ठ -159
मूल्य -250 रुपए