अपने बाॅस के रवैये से नाखुश होकर महेश बाबू दफ्तर से छुट्टी लेकर घर बैठ गये। परिणाम स्वरूप उनका वेतन कटने लगा। कुछ दिनों तक तो जमा – पूंजी से घर खर्च मैनेज होता रहा, लेकिन कुछ समय के बाद दिक्कत होने लगी। महेश बाबू के मित्रों तथा परिजनों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह किसी की भी सुनते ही नहीं थे।
पति की जिद के सामने मीना की भी एक न चलती थी इसलिए मीना ने सब ईश्वर पर छोड़ दिया।
मीना की चाहे कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, वह प्रतिदिन सांझ को भगवान के सामने दीया जलाना नहीं भूलती थी। एकदिन ऐसे ही शाम को दीया जला रही थी और उसका बारह वर्षीय बेटा गोलू उससे नाश्ता मांगने लगा, मीना ने उससे कहा “थोड़ी देर और रुक जा मैं भगवान के आगे दीया जला लूँ, फिर तुझे नाश्ता देती हूँ”।
गोलू ने कौतूहल वश अपनी माँ से पूछा.. ‘ मम्मी आप ये रोज शाम को लक्ष्मी जी को दीया क्यों जलाती हैं.”.?
मीना बोली -” बेटा ऐसा करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और घर में सुख समृद्धि आती है। गोलू इस बात से सहमत नहीं हुआ और बोला – मम्मी घर में सुख समृद्धि लक्ष्मी जी के आगे दीया जलाने से नहीं आयेगी , वो तो पापा के दफ्तर जाने से आयेगी।आप ही तो कहती हैं कि कर्म ही पूजा है। यह सुनकर मीना कुछ न कह स्की और चुपचाप दीया जलाकर रसोई में गोलू के लिए नाश्ता निकालने चली गई।
अगली सुबह जब मीना महेश बाबू को चाय देने उनके कमरे में गई तो तो देखा महेश बाबू दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रहे हैं। उन्होंने मीना को जल्दी से नाश्ता निकालने को कहा।
मीना के होठों पर विजयी मुस्कान खिल गयी। वह मन ही मन सोचने लगी कि महेश जी को जो बात मैं तथा बड़े – बुजुर्ग भी नहीं समझा पाये उन्हे उनके छोटे से बेटे ने समझा दिया ।

बहुत बढ़िया लिखा है 👍👍
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बहुत बहुत धन्यावाद आपको 😊
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