तिमिर कितना भी गहरा क्यों न हो, इतने बड़े आसमान में छोटे-छोटे टिमटिमाते हुए निर्भीक सितारे अपना अस्तित्व बोध कराते हुए हमारा ध्यान स्वतः अपनी ओर खींच ही लेते हैं और हम उनकी खूबसूरती में बंधे गिनती शुरू कर देते हैं, पर लाख कोशिशों के बावजूद भी उसकी गणना नहीं कर पाते। कुछ ऐसे ही कवयित्री, लेखिका ऋता शेखर मधु जी के हायकु संग्रह के वर्ण सितारे भी हैं।
हाँ वर्ण सितारे, बहुत ही सटीक शीर्षक है इस संग्रह का। क्योंकि कवयित्री ऋता शेखर मधु ने वर्ण सितारे चुन – चुन कर जिस खूबसूरती और बुद्धिमत्ता पूर्वक भावनाओं के क्षितिज में सजाया है वह काबिले तारीफ है।
5,7,5 अर्थात पहली पंक्ति मे पाँच वर्ण, दूसरी पंक्ति में सात और तीसरी में पाँच वर्णों में सन्निहित जापान से आई हाइकु विधा भारत में आकर साहित्य जगत में अपना स्थान बनाने में पूरी तरह से कामयाब हो गई है।ऐसे में ऋता शेखर मधु जी के वर्ण सितारे हायकु विधा में अपना विशिष्ट स्थान बनायेंगे ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।
पुस्तक का शुभारंभ माँ वीणा वादिनी को समर्पित कर कवयित्री ने अपने सूझ – बूझ और धार्मिक भावनाओं का बहुत ही सुन्दर परिचय दिया है-
शुभ आरम्भ
ज्ञान देवी के नाम
पृष्ठ प्रथम
माँ सरस्वती
साहित्य की झोली में
आखर मोती
कवयित्री ने प्राकृतिक चित्रण मन मोह लेता है और हमारे मन मस्तिष्क में वह खूबसूरत दृश्य अपनी ओर खींचने लगता है –
नभ सिंदूरी
लौट रही आहट
चहका नीड़
साँझ सजीली
दुपट्टा चाँदनी का
धरा के कांधे
उजली भोर
बदल रही प्राची
धरा के वस्त्र
कोई भी लेखक हो या कवि, प्रेम नहीं लिखा तो क्या लिखा? अतः कवयित्री प्रेम जैसे खूबसूरत भाव को नवीन उपमा से अलंकृत करती हुई लिखती हैं –
प्रेम
नभ में घन
नैनो के संग काजल
प्रेम मिलन
प्रेम किताब
पन्नो के बीच दबे
सूखे गुलाब
कवयित्री की जीवन दर्शन की अनुभूतियाँ भी बहुत गहन हैं –
जीवन सिंधु
दुख – सुख दो तट
मध्य लहर
जग सागर
मछुआरे की खुशी
जल की मीन
म्लान में उगे
प्रभु चरण चढ़े
गुणी कमल
कान्हा में प्रीत
जीवन में संगीत
जीने की राह
जो भरा नहीं भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। हृदय नही वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश से प्यार नहीं। महाकवि की यह पंक्तियाँ कितनी सत्य व सटीक हैं कि शायद ही ऐसा कोई कवि हृदय होगा जिसके हृदय धरा पर देश प्रेम का पुष्प न पल्लवित हुआ हो। अतः कवयित्री सरहद पर तिरंगे को लहराता देख कर अपनी भावनाओं को यूँ प्रकट करती हैं –
दोनों फकीर
सरहद पर है
एक लकीर
बिखेरे ज्योति
सरहद का दीप
माने न बंध
अति संवेदनशील कवयित्री ने हवाओं के भार को भी महसूस किया और लिखा –
बाग मोंगरा
सुगंधो की पोटली
हवा के कांधे
भाई बहन के पावन पर्व रक्षाबंधन का जिक्र करते हुए कवयित्री कहती हैं –
गूँथे बहना
मोती – मोती आशीष
भाव रेशमी
चूंकि कवयित्री शिक्षिका रह चुकी हैं इसलिए आधुनिक बच्चों की नस – नस से वाकिफ़ हैं। यथा –
बड़ों के बाप
आधुनिक बालक
बड़े चालाक
कवयित्री ने रिश्तों को कुछ यूँ परिभाषित करती हैं –
प्रेम के धागे
भावों की बुनकरी
वस्त्र रिश्तों के
प्रकृति और पर्यावरण का खूबसूरत चित्रण करते हुए कवयित्री ने लिखती हैं –
श्रृष्टि चूनर
ईश्वर रंगरेज
रंग बहार
एक स्त्री जब सास बनती है और उसके घर में नई – नवेली बहु आती है उन भावों का खूबसूरत चित्रण मन मोह लेता है –
वधु कंगना
झूम उठे अंगना
घर की शोभा
इस प्रकार 132 पृष्ठों में संकलित जीवन के हर पहलू को समेटे इस पुस्तक में कुल 600 हायकु और एक हायकु गीत हैं । सभी हायकु को कवयित्री ने एक कुशल जौहरी की तरह बहुत ही बारीकी से तराशा है। अतः मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि कवयित्री के इस संग्रह का साहित्य जगत में जोर – शोर से स्वागत किया जायेगा। मैं कवयित्री ऋता शेखर मधु जी को हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएँ देती हूँ।
समीक्षक – किरण सिंह
लेखिका – ऋता शेखर मधु
पुस्तक का नाम – वर्ण सितारे
प्रकाशक – श्वेतांशु प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य – 250 रुपये