पुरस्कार

कवयित्री रत्ना को लेखन का बहुत शौक था इसीलिए उनके मन में जो भी आता उसे लिख दिया करती थीं और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया करती थीं। शौक मन पर इतना हावी हो गया कि उसकी रचनाएँ पुस्तकों में संकलित होने लगीं। परिणामस्वरूप उसकी जमा – पूंजी पुस्तकें प्रकाशित करवाने में खर्च होने लगीं जिससे उसे कुछ आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा और घर परिवार में भी आवाज़ उठने लगी कि पुस्तकें प्रकाशित करवारना फिजूलखर्ची के सिवा कुछ भी नहीं है। इस बात से रत्ना बहुत आहत हुई। वह मन ही मन सोच रही थी कि मुझसे तो अच्छी घर की काम वाली बाई है कम से कम वह तो अपने मन से अपनी कमाई खर्च तो कर सकती है। हम घरेलू औरतें चौबीसों घंटा घर परिवार में लगा देती हैं लेकिन उसका कोई मोल नहीं, यह सोचते – सोचते उसकी आँखों से आँसुओं की कुछ बूंदें गालों पर टपक गये। फिर रत्ना ने अपने आँसुओं को आँचल के कोरों से पोछते हुए मन ही मन निर्णय लिया कि अब से मैं इस फिजूलखर्ची में नहीं पड़ूंगी और घर के काम में व्यस्त हो गई।
तभी मोबाइल की घंटी बजी, मोबाइल पर किसी अन्जान का नम्बर था इसीलिए उसने थोड़ा झल्लाते हुए ही मोबाइल उठाया।
उधर से आवाज़ आई “आप रत्ना जी बोल रही हैं?”
रत्ना – “जी बोलिये क्या बात है?”
उधर से आवाज़ आई “जी मैं संवाददाता हिन्दुस्तान से बोल रहा हूँ, सबसे पहले तो हार्दिक बधाई।”
रत्ना – “बधाई…. किस बात की?”
आपको नहीं मालूम?आपको हिन्दी संस्थान से एक लाख रूपये पुरस्कार राशि की घोषणा हुई है।”
रत्ना -“क्या? हार्दिक धन्यावाद…….. अब रत्ना के गालों पर खुशी के आँसू छलक पड़े।
वह मन ही मन ईश्वर का आभार प्रकट करते हुए अपना निर्णय बदल लेती है और संवाददाता द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देती है।

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