चारो धाम

चारो धाम 

वरिष्ठ नागरिकों की गोष्ठी चल रही थी। सभी अपने-अपने रिटायर्मेंट के बाद की जिंदगी जीने के अपने-अपने तरीके साझा कर रहे थे। 

रमेश बाबू बोले ” मैं देश – विदेश का भ्रमण कर समय का सदुपयोग करता हूँ ” 

सिद्धेश्वर बाबू ने कहा – “मैं तो समाज सेवा में अपना समय व्यतीत करता हूँ। 

अमरेंद्र बाबू ने कहा – मैं तो भजन कीर्तन और तीर्थ आदि करता हूँ। 

सुन्दर बाबू सभी की बातें सुन रहे थे तभी सबने कहा” आप भी अपनी सुनाइये सुन्दर बाबू ।” 

सुन्दर बाबू ने कहा – मुझे तो नौकरी वाली जिंदगी में बहुत ऐशो आराम मिला, कमी रह गई थी तो गाँव की सहज, सरल जीवन शैली तथा अपनेपन की इसलिए मैं तो रिटायर्मेंट के बाद अपना अधिकांश समय गांव पर बिताता हूँ जहाँ मुझे गंगा के किनारे कश्मीर की झील नज़र आती है तो खेतों में वहाँ की वादियाँ। वहाँ के मंदिर में चारो धाम और बड़े – बुजुर्गों में देव… । “

सुन्दर बाबू की बातें सुनकर वहाँ बैठे सभी लोग अचम्भित हो उनका मुंह ताकने लगे। 

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