शगुन के स्वर

शगुन के स्वर- परंपरा को सहेजते गीतों का संग्रह

“बन्नी आई चुपके से बन्ने के ख्वाब में
बन्नी बोली बन्ने से कंगन ले के आना
जो भी किये हो वो वादे निभाना
मुझको पहनाना तुम अपने हाथ से
बन्नी आई चुपके….
किरण सिंह विवाह का अवसर ढोलक की थाप, मजीरे का संग और हवा में तैरते लोकगीतों, देवी गीतों और बन्ना बन्नी साथ में होती ननद-भौजाई की चुहल, लड़के वालों और लड़की वालों के बीच जवाबी तान... कौन सा ऐसा भारतीय मन होगा जिसने स्मृतियों की गांठ में ये सहेज कर ना रखा हो l परंतु बदलते समय के साथ पश्चिमी सभ्यता की ऐसे आंधी चली कि हम अपनी ही परंपरा को भूलने लगे l डी जे के कानफोडू शोर में परंपरा की मिठास कहीं खो गई l विदेशी लिबास में भारतीय मन अतृप्त रह गया l एक पीढ़ी बाद जब होश आया तो ढोलक पर झूम-झूम कर गाने वाली एक पीढ़ी हमसे विदा ले चुकी थी l ऐसे में ज़रूरी हो गया कि कुछ लोग आगे आयें और उसे सहेजे l

किरण सिंह जी ने एक साहित्यकार होने के नाते ये बीड़ा उठाया और ले कर आई “शगुन के स्वर” जिसमें विवाह के समय गाए जाने वाले गीत हैं l इसके गीत दो भागों में विभाजित हैं l पहले वो जो पारंपरिक रूप से गाए जाते हैं और दूसरे जो किरण जी के स्वरचित है l कविता, कहानी और बाल साहित्य की पुस्तकों के बाद लोक के लिए उनका ये अनूठा कार्य है l लोकगीतों की हमारे देश की समृद्ध शाली परंपरा को सहेजते गीतों का यह संग्रह अद्भुत है। मोबाइल में होने के कारण इसे किताब ले जाने या याद रखने के झंझट के बिना आसानी से गाया जा सकता है। अब इसे देखिए—
होत सबेरे कृष्ण जागेले
होत सबेर कृष्ण जागेले
बंशिया बजावेले है 2

ए जागहुँ जग-संसार
चलहुं राधा खेल्न हे 2

इसे पुस्तक के रूप में लाने का कारण वो अपनी बात में स्पष्ट करती हैं कि, “मुझे याद हैं वो बचपन के दिन जब गांवों में शादी विवाह के दिनों में या तीज त्योहारों में गीतों की स्वर लहरी से सारा वातावरण गूंज उठता था l वैसे ये प्रथा गांवों में आज भी जिंदा है, परंतु दुख होता है कि सहारों में उस प्रथा और ढोलकी की थाप की जगह डी जे ने ले ली है l इसी कारण मैंने इसे संग्रह के रूप में लाने की ठान ली l

नई पीढ़ी को अपने पारम्परिक स्वाद से परिचित कराने के साथ साथ दहेज का विरोध करने वाला दूल्हा एक शिक्षा व आश्वासन है कि बहु ही असली दहेज है को शिरोधार्य किया जाए। इस हुंकार को तिलक के समय ढोलक की थाप पर गाए गीत की एक बानगी देखिए…
आदतें अपनी अब दो बदल
नहीं तो बड़ा महंगा पड़ेगा
मांगेगा जो भी दहेज
वो लड़का कुंवारा रहेगा
लेकिन बदलते पुरुष को भी उन्होंने देखा है और वो भी जवाब में दहेज लेने से इंकार करते हैं

“ दहेज मैं क्या करूँगा
मैं तो साले जी दिल का राजा
बन्नी दिल की रानी
दहेज मैं क्या करूँगा तो अंत में यही कहूँगी कि सहलगे शुरू हो गई है और अगर आप भी अपनी परंपरा को सहेजते इन गीतों को गाना – गुनगुनाना चाहते हैं तो ये एक अच्छा विकल्प है l

प्रिय मित्र किरण सिंह जी के इस अद्भुत प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं।

https://www.amazon.in/gp/product/kindle-redemption/B0BLHHZ8TG?ref=pe_kinw_eml_rdm&kinRedeem=GIFT&kinRedeemToken=GS2TTFVL3WPQ3SG&ref_=pe_2705701_130995151

Advertisement

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s