कवि तू अपने मन की लिख

कोई कहता गज़ल लिखो
तो कोई कहता गीत
कोई कहता नफरत लिख दो
और कहे कोई प्रीत
चल तू अपने ही लय में मत
चाटुकारिता सीख
कवि तू अपने………………
चाहे लिख दे छन्द सुन्दरम्
या लिख होकर मुक्त
भाव चयन कर भर दे जो भी
तुझे लगे उपयुक्त
रस श्रृंगार में लिख सुकोमल
वीर रौद्र में चीख
कवि तू अपने…………..
कभी न चलना भेड़ चाल में
मान हमारी बात
करके मन ही मन में चिंतन
परख सभी जज्बात
लिख दे तू कुछ सबसे हटकर
बिन पकड़े ही लीक
कवि तू अपने………..
मंच सुशोभित कर कविवर
जग को कर उजियार
मिटा नफ़रतों को हर दिल से
भर दो थोड़ा प्यार
स्वयं बजेंगी तब तालियाँ
मत माँगना भीख
कवि तू अपने…………