
लगीं संवरने रश्मियाँ, हुई सुहानी भोर।
लगीं संवरने रश्मियाँ, हुई सुहानी भोर।
शीघ्र उगो तुम चन्द्रमा, आज करो मत रार |
दूंगी मैं तुमको अरघ, कर सोलह श्रृंगार |
कहने को तो हैं यहाँ, मित्रों मित्र हजार।
किन्तु परखने पर मिले , गिने चुने दो चार।।
दूषित है वातावरण , चिंतित है संसार ।
चलो लगायें वर्ष में, किरण वृक्ष दो चार।
पंचर होकर सायकिल ,हुई लक्ष्य से दूर।
पुनः कमल खिलने लगा, हाथ हुआ मजबूर ।
माता, बहनों, भाइयों,अब तो लो संज्ञान।
लोकतंत्र का पर्व है , चलो करें मतदान।
बाराती सज – धज चले , दूल्हे हैं बेहाल ।
दूल्हन कुर्सी हाथ में , लिये खड़ी वरमाल।
लिये खड़ी वरमाल, सोचती अपने मन में।
किसकी होगी जीत, स्वयंवर के इस क्षण में।
लटके, झटके दे रहे, तोड़ रहे हैं तान।
तरह-तरह के यत्न कर, खींच रहे हैं ध्यान।