
कामनाएँ फिर से जागी जा रही
भावनाएँ भी उमड़ कर आ रहीं है
रात में छुपकर मधु का पान कर
चांदनी चंदा में सिमटी जा रही है
आ गया नव वर्ष सजकर देख लो
रागिनी नव गीत सुर में गा रही है
खिल गईं किरणें भी देखो आस की
यामिनी लेकर बिदाई जा रही है
ओस की बूंदें धरा को चूमकर
फिर गगन को ले संदेशा जा रहीं है
सर्द से ठिठुरी किरण अलसाई सी
संग रवि के खिल के देखो आ रही है