सपोर्ट
करीब दस वर्षो के बाद मेरे मोवाइल पर अचानक एक काॅल आया! आवाज़ तो कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी, फिर भी मैं ठीक – ठीक नहीं पहचान पाई। मेरे पूछने पर उसने बताया – “मैं अमिता हूँ और अब तुम्हारे ही शहर में आ गई हूँ , मतलब मेरे पति का ट्रांसफर पटना में ही हो गया है। यह सुनकर मुझे खुशी हुई … हो भी क्यों न..? आखिर वह मेरी सहपाठिनी थी । बातों – बातों में जब उसने बताया कि उसकी मम्मी भी आई हैं तब मुझे और भी खुशी हुई क्योंकि उसकी मम्मी मेरी काॅलेज की प्रिंसिपल थीं। बातों के क्रम में ही मैंने उन्हें अगले दिन खाने पर आमंत्रित कर दिया। मोबाइल रखने के बाद पुरानी स्मृतियाँ चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूमने लगीं।
स्नातक प्रथम वर्ष में गुलाब देवी महिला महाविद्यालय में मेरा दाखिला हुआ था। एक दिन कुछ बातों को लेकर अपनी सहपाठिनी अमिता से मेरा विवाद हो गया। अमिता काॅलेज की प्राध्यापिका की बेटी थी इसलिए वह अपना अपना थोड़ा रुआब दिखाने लगी थी…..! मैं ठहरी लडाकू जो हमेशा ही अन्याय के खिलाफ खड़ी हो जाती थी सो उस दिन भी मैंने उसे एक की चार सुना दी।
हुआ यूँ था कि एन0 एस0 ( नेशनल सोशल सर्विस स्कीम में छात्राओं का चयन होना था। कुछ बातों को लेकर मेरी और अमिता की अनबन हो गई थी तो उसने कहा – “मैं मम्मी से कह दूंगी कि तुम्हें एन ० एस ० एस ० ( National service scheme ) में नहीं लें
। ”
अमिता की बात सुनकर मुझे बहुत तेज गुस्सा आ गया और मैंने उससे कहा – ”
तुम कौन होती हो बोलने वाली ..? हाँ होंगी मम्मी तुम्हारी घर में लेकिन यहाँ तो इस काॅलेज की प्रिन्सिपल हैं और जैसे तुम स्टूडेंट हो वैसे मैं भी हूँ । ” उस समय वहाँ पर उपस्थित सभी लड़कियाँ मेरे पक्ष में हो गयी थीं इसलिए अमिता वहाँ से चुपचाप निकल गई।
दूसरे दिन काॅलेज में दहेज प्रथा पर वादविवाद प्रतियोगिता में मुझे बोलना था और उसी दिन एन एस एस में नियुक्ति की सूची भी निकलना था इसीलिए मैं काफी उत्साहित थी।
सुबह काॅलेज में जैसे ही पहुंची तो मेरी नज़र एन एस के सूची पर पड़ी। यूँ तो मैं एन एस एस में अपने चयन को लेकर आश्वस्त थी फिर भी सूची पर जल्दी – जल्दी अपनी नज़रें दौड़ायी। सूचि में अपना नाम नहीं देख कर मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। मैं अपना गुस्सा रोकने में नाकाम हो गई और मैं सीधे प्रिन्सिपल के ऑफिस में घुसकर प्राचार्या की तरफ़ मुखातिब होकर उनसे पूछा – “मैम मेरा नाम लिस्ट में ( एन एस एस में) नहीं है ?
उन्होंने कहा आपने लिस्ट निकलने से पहले मुझसे आकर क्यों नहीं कहा?”
उनकी बात सुनकर मैंने उनसे प्रतिप्रश्न किया –
“मैम इंटरव्यू तो लिया गया था न? और एन o एस o में तो जिस योग्यता की जरूरत होती है वह सब तो मुझमें है ही। ”
फिर प्रिंसिपल ने मुझसे कहा -” तो आप ही बताइये कौन अयोग्य है? ”
मैंने कहा मुझे क्या पता …. मैं तो इतना जानती हूँ कि मैं योग्य हूँ और मैने अमिता से हुए विवाद का जिक्र उनसे यथावत कर दिया साथ में यह आशंका भी जता दी कि इसी वजह से मुझे एन, एस, एस में नहीं लिया गया।
पूरी बात सुनने के बाद प्राचार्या मुझे समझने के बजाय उल्टा मुझपर ही क्रोधित होकर मुझे ही खरी – खोटी सुना दिया – ” हाँ मैं अमिता की मम्मी हूँ और उसका सपोर्ट करूंगी। मेरी जगह आपके भी मम्मी पापा होते तो आपका सपोर्ट करते। किरण आप लड़की हैं, कल को आपकी शादी होगी, इस तरह के तेवर रहेंगे तो कैसे निभा पाइयेगा आप ससुराल में ? आदि – आदि . इस प्रकार की उन्होंने बहुत सारी दीक्षा दे दी उन्होंने मुझे।
उस दिन मैं अपनी प्राचार्या के अन्याय पूर्ण व्यवहार से दुखी होकर घर आ गई और पूरा विवरण अपने पिता को सुना दिया ….! मेरे पिता अधिवक्ता थे सो उन्होंने मुझसे प्राचार्या के खिलाफ विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर को एक शिकायत पत्र लिख कर पोस्ट करने का सुझाव दिया।
अगले दिन सुबह प्राचार्या ने अपने ऑफिस में मुझे बुलाकर अमिता के बारे में कहा – ” अमिता को हम लोगों ने बहुत ही लाड़ प्यार से पाला है, उसकी हर ख्वाहिश को पूरा किया है, इस लिए थोड़ी जिद्दी हो गई है.। उन्होंने दूसरी लिस्ट में मेरा नाम निकलने का वादा किया।
उस दिन के बाद से मैं अमिता के हरेक खामियों को नजरअंदाज कर दिया करती थी !
फिर मेरी शादी हो गई उसके बाद नहीं मिल पाई उससे .!
उसकी शादी का निमंत्रण आया था किन्तु जा नहीं पाई थी , लेकिन अन्य सहेलियों से उसके विवाह का विवरण सुनी था मैंने। उसकी शादी एक हैंडसम आई 0ए 0 एस 0 आफिसर से काफी भव्यता के साथ हुई थी।
अगले दिन अमिता सबके साथ मेरे घर आई तो मैं उसे पहचान ही नहीं पाई।
कितनी बदल गई थी वह, गोरी तो पहले भी नहीं थी , लेकिन अभी तो जैसे लग रहा था काली माँ की अवतार ही आ गयी हो , बड़ी बड़ी आँखें डरावने लग रहे थे, मोटी भी हो गई थी वह और ऊपर से बेतरतीबी से पहनी गई साड़ी में कुछ विक्षिप्त सी लग रही थी ! अगर उसने काॅल करके नहीं बताया होता तो मैं उसे पहचान भी नहीं पाती ! उसे देखकर मैं उसकी तुलना काॅलेज वाली अमिता से करने लगी थी सोंचने लगी क्या ये वहीं अमिता हैं…जिसका वार्डरोब तरह -तरह के नये – नये फैशन के महंगे कपड़ों, गहनों , महंगे मैचिंग सैन्डल्स, बैग्स आदि से सजा होता था। कुछ देर के लिए मुझे उसकी दशा पर दया आ गयी थी।
इसके विपरीत उसका पति गज़ब का हैंडसम ,उसे देखकर मेरे मन में यह विचार आया कि जरूर यह दूल्हा खरीद लिया गया होगा लेकिन मैं अपनी मनोभावनाओं को छुपाते हुए उन लोगों के स्वागत सत्कार में लग गयी।
खाने के दौरान बातों – बातों में अमिता तथा उसकी मम्मी मेरी प्रशंसा के पुल बांधे जा रहीं थीं। .कभी मेरी , तो कभी मेरे घर की कभी मेरे बनाए हुए नाश्ते की तो कभी मेरे पति की तो कभी बच्चों की। मैं उससे कुछ और लेने का आग्रह कर व्यन्जन परोसती रही , साथ – साथ अपनी प्रसन्नता भी व्यक्त करती रही।
अचानक मेरी प्रिन्सिपल मेरा घर देखने के बहाने मेरे साथ एकान्त में बातें करने की इच्छा इशारों में ही जाहिर की जिसकी तलाश तो मुझे भी थी।
मैंने अपनी प्राचार्या से कहा – “मैम इतना अच्छा अमिता का पति है और इतना बड़ा आॅफिसर भी फिर अमिता ने ऐसा हाल क्यों बनाये रखा है…?”
प्रिंसिपल ने बहुत ही दुखी होते हुए मुझसे कहा – “किरण यही तो मेरी सबसे बड़ी भूल थी। अमिता का पति हमारे सम्पत्ति की लालच में पड़कर उससे विवाह तो कर लिया उसे दिल से अपनी पत्नी का दर्जा नहीं दे पाया , कई बार तलाक देने की धमकी देता है। तुम सब को तो मैं समझाने में कामयाब हो गई थी लेकिन उसके पति को समझाने में असफल रही खैर गलती तो मेरी ही है मैं ही हमेशा अमिता को हर सही गलत में सपोर्ट करती रही। बस तुम इस शहर में हो उसकी सुधि लेते रहना। ”
प्राचार्या की बातें सुनकर मुझे उनपर दया आ रही थी। इस अनुभव के माध्यम से मैं यही कहना चाहती हूँ कि आप कितने भी समर्थ हों पर बच्चों की हर जिद्द नहीं पूरी करें, क्या सही है और क्या गलत उन्हें समझायें क्योंकि आप हर जगह उनका सपोर्ट नहीं कर पायेंगे
।
पढ़ना जारी रखें “सपोर्ट” →