मां पत्नी और कुशल गृहणी के दायित्व वहन करते हुएश्रीमती किरण सिंह लेखन की ओर लौटी और बहुत कम समय में ही पाठकों के बीच अपनी सरल लेखन से जगह बना ली है। आप सभी तरह के प्रतिनिधि पत्र पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित हो रही हैं। अभी हाल में ही इन्हें उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान ने 2020 में प्रकाशित श्री राम कथामृतम् (बाल खण्ड काव्य) के लिए सूर पुरस्कार से नवाजा है। इससे पहले भी 2019 के लिए उत्कृष्ट बाल साहित्य साधना के लिए सुभद्रा कुमारी चौहान महिला सम्मान से नवाजी जा चुकी है। अब तक आपकी दो कहानी संग्रह,व कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं और होने वाले हैं ।
प्रस्तुत है युवा कवयित्री व लेखिका महिमा श्री से साहित्यकार किरण सिंह की बातचीत।
1.सबसे पहले आपको उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सुभद्रा कुमारी चौहान तथा सूर पुरस्कार के लिए बधाई? इस संबंध में कुछ बताए।
उत्तर –
अभिभूत हूँ । सच कहूँ तो मैंने इस पुरस्कार के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। सुना था बच्चे भगवान के रूप होते हैं और उन्हें प्रसन्न करना ईश्वर को प्रसन्न करना होता है, अब अनुभव भी कर रही हूँ।
इस पुरस्कार को मैं ईश्वरीय कृपा, माता-पिता एवं गुरुजनों की शिक्षा एवम् आशिर्वाद, मेरे स्नेहिल एवम् सम्मानित मित्रों, भाई – बहनों तथा पाठकों के स्नेह व शुभकामनाओं का प्रतिफल मानती हूँ ।
सबसे बड़ी बात कि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने मेरी मनोकामना पूरी कर दी क्योंकि मैंने श्री राम कथामृतम् यही सोच कर लिखा ही था कि बच्चे श्री राम के चरित्र से परिचित हों।
2.आपने लेखन की शुरुआत कब की।इसकी प्रेरणा कहाँ से मिली?
मेरे मन में लेखन का बीज मेरे पिता ने ही डायरी देकर बोया था। तब मेरी आयु करीब दस वर्ष थी ।
3.बाल साहित्य रचने के लिये किस प्रकार की तैयारियां करनी पड़ी।
पहले तो अपने बचपन में गई और उसके बाद अपने बच्चों के बचपन की क्रियाकलापों ( उनके बाल हठ, छोटे – छोटे झगड़े, उनकी जिज्ञासा, उनकी फर्माइश, आदि) को याद करते हुए बाल साहित्य रचना आसान हो गया ।
4.गृहणी होने के नाते लेखन में कितना लाभ और हानि देखती है। क्या गृहणी होने से पूरा समय दे पा रही है।
गृहणी होने का लाभ तो मिला कि बच्चों के बाहर जाने के बाद मुझे समय बहुत मिला जिसमें मैं सृजन कर पाई। और हानि यह है कि मेरे पास बाहरी दुनिया का अनुभव कामकाजी महिलाओं की अपेक्षा कम है जो कि लेखन के लिए जरूरी हो जाता है। मैं बाहरी दुनिया को बातचीत, समाचार पत्र – पत्रिकाओं, न्युज चैनलों तथा फिल्मों के माध्यम से देख – सुन तथा पढ़ पाती हूँ ।
5.आप छन्दयुक्त कविता, दोहे , कहानी रचती आ रही हैं।अब बाल साहित्य भी लिख रही हैं। किस प्रकार विधाओं की प्रक्रिया में अंतर साधती है।
बिल्कुल उसी प्रकार जैसे हम गृहणियां अपनी रसोई में विविधता लाती रहती हैं। बस देखना होता है कि कौन सी भावनाएँ किस विधा में फिट बैठती हैं।
6.अभी आपकी दो बाल साहित्य की पुस्तकें आइ हैं
आगामी योजनाएं क्या है?
शीघ्र ही अकड़ – बक्कड़ बाॅम्बे बो,( बाल कविता संग्रह) शगुन के स्वर (विवाह गीत संग्रह) व लहरों की लय पर (मुक्तक संग्रह) हाँ इश्क है ( ग़ज़ल संग्रह) जीवन कड़ियाँ ( लघुकथा संग्रह) , जिंदगी लय में चलो ( गीत – नवगीत संग्रह) आ रहा है । एक उपन्यास का कथानक तैयार है शीघ्र ही लिखना शुरू करूंगी। कुछ बड़े महान साहित्यकार हैं जिनकी जीवनी भी लिखूंगी। उसके बाद मैं किसी ऐतिहासिक चरित्र पर खण्ड काव्य और महाकाव्य भी रचना चाहती हूँ।
7.बाल साहित्य ही आपका लक्ष्य है या अन्य विधाओं में लेखन चलता रहेगा।
मैं हमेशा ही जब जो भावनाएँ प्रबल होंगी उन्हें शब्दों में बांधने का प्रयास करती रहूंगी। मुझे तो बस यही देखना है कि कौन सी भावनाएँ किस विधा में फिट बैठती हैं। आगे माँ शारदे की इच्छा।
8.परिवार से लेखन में कितना सहयोग मिलता रहा है।
मेरे परिवार में साहित्यकार सिर्फ मैं ही हूँ इसीलिए लेखन में मुझे किसी का सहयोग तो नहीं मिला।
फिर भी बेटे मेरे गाइड का काम करते हैं और पतिदेव आलोचक की भूमिका निभाते हैं।
- साहित्य में स्त्री लेखन का भविष्य कैसा देख रही है?क्या यहाँ भी किसी तरह का भेदभाव देखना पड़ा?
स्त्री की प्रकृति ही सर्जन करने की होती है तो निश्चित तौर पर स्त्रियों का भविष्य उज्जवल दिख रहा है मुझे।
मैं बाहर कम ही निकलती हूँ इसीलिए भेदभाव जैसा अनुभव मेरे पास नहीं है। बल्कि मुझे तो स्त्री होने के नाते कुछ अधिक ही मान सम्मान मिल जाता है।