महिमा श्री से मेरी बातचीत

मां पत्नी और कुशल गृहणी के दायित्व वहन करते हुएश्रीमती किरण सिंह लेखन की ओर लौटी और बहुत कम समय में ही पाठकों के बीच अपनी सरल लेखन से जगह बना ली है। आप सभी तरह के प्रतिनिधि पत्र पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित हो रही हैं। अभी हाल में ही इन्हें उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान ने 2020 में प्रकाशित श्री राम कथामृतम् (बाल खण्ड काव्य) के लिए सूर पुरस्कार से नवाजा है। इससे पहले भी 2019 के लिए उत्कृष्ट बाल साहित्य साधना के लिए सुभद्रा कुमारी चौहान महिला सम्मान से नवाजी जा चुकी है। अब तक आपकी दो कहानी संग्रह,व कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं और होने वाले हैं ।
प्रस्तुत है युवा कवयित्री व लेखिका महिमा श्री से साहित्यकार किरण सिंह की बातचीत।

1.सबसे पहले आपको उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सुभद्रा कुमारी चौहान तथा सूर पुरस्कार के लिए बधाई? इस संबंध में कुछ बताए।

उत्तर –
अभिभूत हूँ । सच कहूँ तो मैंने इस पुरस्कार के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। सुना था बच्चे भगवान के रूप होते हैं और उन्हें प्रसन्न करना ईश्वर को प्रसन्न करना होता है, अब अनुभव भी कर रही हूँ।
इस पुरस्कार को मैं ईश्वरीय कृपा, माता-पिता एवं गुरुजनों की शिक्षा एवम् आशिर्वाद, मेरे स्नेहिल एवम् सम्मानित मित्रों, भाई – बहनों तथा पाठकों के स्नेह व शुभकामनाओं का प्रतिफल मानती हूँ ।
सबसे बड़ी बात कि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने मेरी मनोकामना पूरी कर दी क्योंकि मैंने श्री राम कथामृतम् यही सोच कर लिखा ही था कि बच्चे श्री राम के चरित्र से परिचित हों।

2.आपने लेखन की शुरुआत कब की।इसकी प्रेरणा कहाँ से मिली?

मेरे मन में लेखन का बीज मेरे पिता ने ही डायरी देकर बोया था। तब मेरी आयु करीब दस वर्ष थी ।

3.बाल साहित्य रचने के लिये किस प्रकार की तैयारियां करनी पड़ी।
पहले तो अपने बचपन में गई और उसके बाद अपने बच्चों के बचपन की क्रियाकलापों ( उनके बाल हठ, छोटे – छोटे झगड़े, उनकी जिज्ञासा, उनकी फर्माइश, आदि) को याद करते हुए बाल साहित्य रचना आसान हो गया ।

4.गृहणी होने के नाते लेखन में कितना लाभ और हानि देखती है। क्या गृहणी होने से पूरा समय दे पा रही है।

गृहणी होने का लाभ तो मिला कि बच्चों के बाहर जाने के बाद मुझे समय बहुत मिला जिसमें मैं सृजन कर पाई। और हानि यह है कि मेरे पास बाहरी दुनिया का अनुभव कामकाजी महिलाओं की अपेक्षा कम है जो कि लेखन के लिए जरूरी हो जाता है। मैं बाहरी दुनिया को बातचीत, समाचार पत्र – पत्रिकाओं, न्युज चैनलों तथा फिल्मों के माध्यम से देख – सुन तथा पढ़ पाती हूँ ।
5.आप छन्दयुक्त कविता, दोहे , कहानी रचती आ रही हैं।अब बाल साहित्य भी लिख रही हैं। किस प्रकार विधाओं की प्रक्रिया में अंतर साधती है।

बिल्कुल उसी प्रकार जैसे हम गृहणियां अपनी रसोई में विविधता लाती रहती हैं। बस देखना होता है कि कौन सी भावनाएँ किस विधा में फिट बैठती हैं।

6.अभी आपकी दो बाल साहित्य की पुस्तकें आइ हैं
आगामी योजनाएं क्या है?
शीघ्र ही अकड़ – बक्कड़ बाॅम्बे बो,( बाल कविता संग्रह) शगुन के स्वर (विवाह गीत संग्रह) व लहरों की लय पर (मुक्तक संग्रह) हाँ इश्क है ( ग़ज़ल संग्रह) जीवन कड़ियाँ ( लघुकथा संग्रह) , जिंदगी लय में चलो ( गीत – नवगीत संग्रह) आ रहा है । एक उपन्यास का कथानक तैयार है शीघ्र ही लिखना शुरू करूंगी। कुछ बड़े महान साहित्यकार हैं जिनकी जीवनी भी लिखूंगी। उसके बाद मैं किसी ऐतिहासिक चरित्र पर खण्ड काव्य और महाकाव्य भी रचना चाहती हूँ।

7.बाल साहित्य ही आपका लक्ष्य है या अन्य विधाओं में लेखन चलता रहेगा।

मैं हमेशा ही जब जो भावनाएँ प्रबल होंगी उन्हें शब्दों में बांधने का प्रयास करती रहूंगी। मुझे तो बस यही देखना है कि कौन सी भावनाएँ किस विधा में फिट बैठती हैं। आगे माँ शारदे की इच्छा।

8.परिवार से लेखन में कितना सहयोग मिलता रहा है।

मेरे परिवार में साहित्यकार सिर्फ मैं ही हूँ इसीलिए लेखन में मुझे किसी का सहयोग तो नहीं मिला।
फिर भी बेटे मेरे गाइड का काम करते हैं और पतिदेव आलोचक की भूमिका निभाते हैं।

  1. साहित्य में स्त्री लेखन का भविष्य कैसा देख रही है?क्या यहाँ भी किसी तरह का भेदभाव देखना पड़ा?

स्त्री की प्रकृति ही सर्जन करने की होती है तो निश्चित तौर पर स्त्रियों का भविष्य उज्जवल दिख रहा है मुझे।
मैं बाहर कम ही निकलती हूँ इसीलिए भेदभाव जैसा अनुभव मेरे पास नहीं है। बल्कि मुझे तो स्त्री होने के नाते कुछ अधिक ही मान सम्मान मिल जाता है।

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उत्कृष्ट बाल साहित्य साधना के लिए सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान ( उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 2019)से सम्मानित किरण सिंह से लेखिका पूनम आनंद की बातचीत।

किरण

सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के मझौआं गांव में 28 दिसबंर, 1967 को हुआ। इनके पिताजी स्व श्री कुन्ज बिहारी सिंह की शुमार अच्छे एडवोकेट के रूप में होती थी। माताजी दमयंती देवी कुशल गृहिणी थीं। इनके पति भोलानाथ सिंह एसबीएपीडीसीएल के पूर्व डीजीएम हैं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर बलिया में हुई। तत्पश्चात उन्होंने गुलाब देवी महिला महाविद्यालय, बलिया (यूपी) से स्नातक की शिक्षा प्राप्त कीं। संगीत में भी किरण सिंह की गहरी अभिरुचि रही है। इन्होंने संगीत के क्षेत्र में संगीत प्रभाकर ( सितार ) की उपाधि हासिल की हैं। किरण सिंह की सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें मुखरित संवेदनाएं ( काव्य संग्रह ) 2016, प्रीत की पाती ( काव्य संग्रह) 2017, अन्त: के स्वर ( दोहा संग्रह ) 2018, प्रेम और इज्जत ( कथा संग्रह ) 2019, गोलू – मोलू ( बाल कविता संग्रह) 2020, श्री राम कथामृतम् ( बाल खण्ड काव्य) 2020 एवं दूसरी पारी का – ( आत्मकथ्यात्मक संस्मरण संग्रह ) सम्पादन 2020 शामिल हैं।

लेखन विधा – बाल साहित्य, गीत, गज़ल, छन्द बद्ध तथा छन्मुक्त पद्य, कहानी, आलेख, समीक्षा, व्यंग्य !
सम्मान – 1-2019 में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य सेवी सम्मान,
2-उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान (2019)
2-नागरी बाल साहित्य सम्मान ( 2020)

प्रश्न 1-इतने अन्तराल के बाद ऐसा क्या हुआ कि आपकी कलम लेखन के लिए उतावली हो गई।

उत्तर – सामाजिक विसंगतियाँ, रिश्तों के उतार चढ़ाव, लोगों के छल प्रपंच की वजह से जब मन में विरक्ति का भाव पनपने लगा तब चिंतन-मनन के फलस्वरूप आत्मसाक्षात्कार हुआ, भावनाएँ मचल उठीं, संवेदनाएँ मुखर हो उठीं और मेरी कलम चल पड़ी। और तब कविता ने जन्म लिया।

2-आपकी रचनाओं को सराहना कैसे मिली?

जब मैं फेसबुक पर यूँ ही शौकिया तौर पर अपनी रचना पोस्ट कर दिया करती थी तो लाइक्स और कमेंट्स के माध्यम से फेसबुक फ्रेंड्स की सराहना मुझ तक पहुंचती थी और अब रचनाएँ प्रकाशित होने के बाद ईमेल के जरिये।

3-आपके कलम को ताकत कब मिली?

जब उसे सम्पादकों ने प्रकाशित किया . दूरदर्शन केंद्र तथा आकाशवाणी केन्द्र ने रचनाओं का प्रसारण किया, राजभाषा विभाग पटना ने मंच से प्रस्तुति का अवसर दिया तो उसे पढ़कर तथा देख-सुनकर पाठकों, श्रोताओं तथा दर्शकों से जो सराहना मिली उसी की बदौलत मेरी कलम को ताकत मिली। साथ ही सकारात्मकता के साथ की गई आलोचना भी मेरी कलम को चुनौती देकर धार दे दी ।

4-आपकी शिक्षा में संगीत विषय रहा है, और आपकी पहचान साहित्य में बंन रही है, इस पर कुछ कहेगी?

हिन्दी , संगीत और मनोवैज्ञानिक विषय से मैंने स्नातक किया है । यह तीनों विषय साहित्य के लिये महत्वपूर्ण हैं।

5-लेखन में किस विषय को आप अपना मुद्दा बनाती हैं?

जब जो विषय दिल की गहराई में उतर गया और अंतरात्मा को झकझोर दिया उस विषय को लिखने के लिए मेरी कलम अनायास ही चल पड़ती है।

6-महिला लेखक होने के कारण कोई परेशानी या सहायता के उल्लेख आप पाठकों से करना चाहती है तो उसे बतायें?

घर हो या बाहर महिला लेखिकाओं को बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। चूंकि कोई भी साहितकार शुरुआत में ही प्रसिद्धि नहीं पा लेता – इसलिए जब वो लिख रही होती हैं तो घर के अन्य सदस्यों को लगता है कि ये फालतू काम कर रही हैं। अतः उन्हें गैरों की तो छोड़िये अपनो का भी उपहास झेलना पड़ता है।
औरतों के लिए सबसे मुश्किल होता है प्रेम विषय पर कलम चलाना।

7-आप एक गृहणी है, आपने लेखन और गृहस्थी में सामंजस्य कैसे बैठाया?

गृहस्थी मेरी पहली प्राथमिकता रही है। हमेशा मैं खाली समय में ही लिखती – पढ़ती हूँ ।हाँ कभी-कभी मनमौजी भावनाएँ कभी भी आ जाती हैं तो उस वक्त मैं अपने मोबाइल में उन भावनाओं को नोट कर लेती हूँ और बाद में विस्तार देती हूँ।

8-कहते है प्रतिभा लाख छुपा ले छुपती नहीं है? आप इस खड़ी उतर रही है, आपका क्या कहना है?

अगर सोशल मीडिया न होता तो आज भी मेरी प्रतिभा छुपी ही रहती।

9-स्त्रियाँ हुनरमंद होती है जन्मजात और कुछ सीखने -सीखाने की कला उन्हें ऊंचाई देती है। लेकिन, लेखन की कला इससे हटकर है ।आप अपने विचारों के नजरिया से कुछ कहे?

निश्चित तौर पर लेखन अपने अन्दर से आता है लेकिन लेखन की विधाओं को सीखना जरूरी हो जाता है। कुछ साहित्यिक कार्यशालाएँ ( आनलाइन व आफलाइन) सराहनीय कार्य कर रही हैं। वैसे यदि किसी में सीखने की ललक हो तो गूगल पर सबकुछ उपलब्ध हो जाता है।

10 साहित्यक गुरू के रूप में आपके प्रेरणा के स्तंभ का श्रेय आप किसे देंगी?

माननीय भगवती प्रसाद द्विवेदी जी को – क्योंकि उन्होंने ही बालसाहित्य सृजन प्रत्येक साहित्यकार की नैतिक जिम्मेदारी है जैसा गुरुमंत्र देकर मुझे बाल साहित्य सृजन के लिए प्रेरित किया।

11-पुरस्कारों और सम्मान के प्रति आपका क्या नजरिया है?

पुरस्कार और सम्मान निश्चित ही उत्साहवर्धन करते हैं। किन्तु जिस प्रकार आज पुरस्कारों और सम्मानों की खरीद बिक्री हो रही है वह विडम्बना है।

12 बाल साहित्यकार के सम्मान में सुभद्रा कुमारी चौहान ‘से आपको सम्मानित किया गया है। अपने उस अनमोल अनुभव को बताये?

अभिभूत हूँ ।सच कहूँ तो इस सम्मान की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। यह सब सिर्फ ईश्वरीय कृपा, माता-पिता एवं गुरुजनों की शिक्षा एवम् आशिर्वाद, मेरे स्नेहिल एवम् सम्मानित मित्रों, भाई – बहनों तथा पाठकों के स्नेह व शुभकामनाओं की बदौलत ही सम्भव हो पाया है।

13-आपकी योजनाएं साहित्य में क्या है?

अबतक तो मैं बिना योजना के ही जब जो जी में आया मौसम स्थिति और परिस्थितियों के अनुसार भावनाओं को शब्दों में पिरोती आई और पाठकों की सराहना व प्रोत्साहन पाती रही – लेकिन इतना स्नेह व सम्मान पाकर साहित्य के प्रति मेरी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है। अब लगता है कि, मुझे योजना बनानी पड़ेगी। वैसे जल्द ही मेरी पुस्तक रहस्य ( कथा संग्रह ) अंतर्धवनि (कुंडलिया संग्रह) शगुन के स्वर (विवाह गीत संग्रह) व लहरों की लय पर गीत ग़ज़ल संग्रह आ रहा है। एक लघुकथा संग्रह के लिए भी लघुकथाएँ लगभग तैयार हो गई हैं। एक उपन्यास का कथानक तैयार है शीघ्र ही शुरू करूंगी। कुछ बड़े महान साहित्यकार हैं जिनकी जीवनी भी लिखूंगी। उसके बाद मैं किसी ऐतिहासिक चरित्र पर खण्ड काव्य और यदि माँ शारदे की कृपा हुई तो महाकाव्य भी रचना चाहती हूँ। साथ ही मैं उन तमाम स्त्रियों को साहित्य से जोड़ना चाहती हूँ जिनकी कलम प्रतिभा सम्पन्न होते हुए भी रुक गई है।
और सबसे जरूरी कार्य जिसके लिए मुझे उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान बालसाहित्य संवर्धन योजना के तहत सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान 2019 के लिए 2021 में मिल रहा है उसके लिए पूरी निष्ठा और इमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए बाल साहित्य को समृद्ध करती रहूंगी।

14 – नवोदित रचनाकारों को अब क्या संदेश देना चाहेंगी?

1-अपने मन में नकारात्मक भावों को न आने दें।
2-औरों की सुने किन्तु अपने मन की करें क्योंकि आप अपने जज स्वयं हैं।
3-कर्म करें और फल की इच्छा न करें। इसका तात्पर्य यह है कि आप लेखन करते रहें और उसे प्रकाशन हेतु भेजते रहें। यदि प्रकाशित नहीं हो रहा है तो हतोत्साहित न हों बल्कि उसे कहीं और भेजें और अपना लेखन जारी रखें – क्योंकि मेरा मानना है कि आज नहीं तो कल फल मिलता ही है। बसर्ते हम इमानदारी से अपना कर्तव्य निभायें।
4-लिखने के साथ – साथ अच्छा साहित्य पढ़ते भी रहें क्योंकि इससे आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
5-लेखन एक साधना है इसलिए चिंतन मनन के लिए एकाग्रता अनिवार्य है। अतः साहित्यिक समारोहों और चिंतन मनन के समय में संतुलन स्थापित करके रखें।

अंधकार और प्रकाश में भेद बतलाता है बाल साहित्य

भगवती प्रसाद द्विवेदी जी

जन्म – जुलाई 1,1955, बलिया (उत्तर प्रदेश (के दल छपरा गाँव में।

आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने वर्ष 2016 के लिए बाल साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती‘, सरस्वती बाल कल्याण – न्यास, इंदौर से देवपुत्र गौरव सम्मान। बिहार राष्ट्र भाषा परिषद के तत्वावधान में विशिष्ट साहित्य सेवा सम्मान। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ से वर्ष 2013 का निराला पुरस्कार, व 2014 का सूर पुरस्कार, चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट, शकुंतला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार, चमेली देवी महेन्द्र सम्मान, भारतीय बाल कल्याण संस्थान, राष्ट्र बंधु स्मृति सम्मान, विद्या वाचस्पति ( पी एच डी ) की मानद उपाधि आदि मिले हैं।

प्रकाशित कृतियाँ – साहित्य अकादमी से ‘भारतीय साहित्य के निर्माता‘ श्रृंखला के तहत प्रकाशित विनिबंध (मोनो ग्राफ) ‘महेन्द्र मिसिर‘ और ललित निबंध-संग्रह ‘माटी में सोनवा‘, चीर हरण, अस्तित्व बोध, फील गुड तथा अन्य कहानियाँ ( कहानी संग्रह) नई कोपलों की खातिर ( नवगीत संग्रह) एक और दिन का इजाफ़ा (कविता संग्रह ) इंटेलेक्चुअल पाॅर्लर ( व्यंग्य संग्रह) भविष्य का वर्तमान, थाती, सदी का सच ( लघुकथा संग्रह ) भिखारी ठाकुर :भोजपुरी के भारतेंदु, महेंद्र मिसिर :भोजपुरी गीतकार ( आलोचना ) भारतीय जनजातियाँ कल आज और कल ( शोध ) भोजपुरी लोककथा मंजू आ ( लोककथा संकलन ) आदि तथा बाल साहित्य की 83 पुस्तकों में मेरी प्रिय बाल कहानियाँ, मेरी प्रिय बाल कविताएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय।

प्रश्न 1- यह तो सत्य है कि हमारे जीवन में अचानक कुछ ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं कि हृदय सागर में भावनाओं की बाढ़ सी आ जाती है और अनायास ही लेखनी चल पड़ती है। हम यह जानना चाहते हैं कि आपके मन लेखन के प्रति अभिरुचि कबसे जागृत हुई?

उत्तर – बचपन की घटना है। जूनियर हाईस्कूल रेवती ( जो मेरे गाँव दल छपरा से करीब दस कीलोमीटर दूर है ) में हर शनिवार को बाल सभा हुआ करती थी जिसमें कविता – कहानी आदि सुनाना होता था। उस समय मेरे मन में बात आई कि क्यों न मैं स्वयं की लिखी हुई रचना प्रस्तुत करूँ और मैंने ऐसा ही किया भी। मेरी रचना सुनकर मेरे शिक्षक जनार्दन पाण्डेय बहुत प्रभावित हुए और पूछे कि यह किसकी रचना है? जब मैंने बताया कि यह रचना मेरी है तो उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और बोले कि लिखा करो। तभी से मैं लिखने लगा।
इसके अलावा भी डेढ़ साल की उम्र में ही मेरी माँ ईश्वर को प्यारी हो गई थीं तो मेरा लालन-पालन मेरी दादी करती थीं। वही मुझे बचपन में अपने साथ सुलाती और लोक कधाएँ सुनातीं जिसके प्रभाव में मैं आ गया और मेरे अंदर बाल साहित्य की तरफ़ अभिरुचि पैदा हुई।

प्रश्न 2 – बाल साहित्य बाल मन पर कितना प्रभावकारी होता है।

उत्तर – बाल साहित्य ही वह माध्यम है जिसके द्वारा बच्चों को बहुत सहजता से जीवन में बहुत कुछ हासिल करने की प्रेरणा दी जा सकती है।
बाल साहित्य अंधकार और प्रकाश में भेद बताता है अतः असफल व्यक्ति को भी सफल बनाने का दम रखता है।
अतः बाल साहित्य बच्चों के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि प्राण वायु।

प्रश्न – 3- बाल साहित्यकारों को किन – किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? तथा आज के युग में बच्चों को आकृष्ट करने के लिए बाल साहित्यकारों को किन – बातों को ध्यान में रखकर साहित्य सृजन करनी चाहिए?

उत्तर – बच्चे ईश्वर के प्रतिमूर्ति होते हैं। इसलिए उनके मनोविज्ञान को पढ़ते हुए उनके लिए सर्जन करना ईश्वरीय आराधना है।
बाल साहित्य की पहली शर्त है बच्चों को आनन्दित करना। बाल साहित्य उपदेशपरक नहीं होना चाहिए।
सीधे – सीधे-सीधे उपदेश देना बच्चों की अभिरुचि को दबाना है। इसलिए बाल साहित्यकारों को चाहिये कि वो अपनी बातों को मजेदार ढंग कविता, कहानी के माध्यम से कहते हुए कुछ उपदेश मूलक ऐसी बातें कह देना चाहिए जो कि बच्चों के मार्गदर्शन में सहायक साबित हो।
अतः बाल साहित्यकारों को सार्थक सृजन करने के लिए बाल मनोविज्ञान की गहरी पड़ताल करना आवश्यक हो जाता है।
एक तरह से बाल साहित्य सर्जना तलवार की धार पर चलने के समान है।

प्रश्न 4 – आज जिस तरह से बच्चे एकाकी, उग्र व चिड़चिड़े होते जा रहे हैं जो कि भविष्य के लिए एक खतरे की घंटी है। ऐसे में साहितकारों का क्या दायित्व हो जाता है।

उत्तर – आज बच्चे एकाकी जीवन जीने को विवश हैं। उनका बचपन अभिभावकों की महात्वाकांक्षा के तले दबकर इस कदर भयाक्रांत है कि कि बच्चे बचपन को भूलकर सीधे बालक से किशोर और युवा हो रहे हैं। नतीजतन बच्चे कहीं कुंठित हो रहे हैं तो कहीं हीन भावना के शिकार, और कहीं कहीं तो बच्चे जीवन से घबराकर आत्महत्या तक कर लेते हैं जो कि पूरे समाज के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
इसके लिए जिम्मेदार हमारी शिक्षा प्रणाली भी है जो बच्चों को मानवीय मूल्यों से काट रही है।
ऐसे में सभी प्रतिष्ठित साहित्यकारों की नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है कि वे आज के संदर्भ में प्रगतिशील तत्वों को जोड़ कर कुछ ऐसा रच दें जो कि रोचकता के साथ – साथ प्रेरक तथा ज्ञानवर्धक हो।
साथ ही अभिभावकों को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों को बाल पत्रिकाएँ पढ़ने के लिए प्रेरित करें व उपलब्ध कराएँ।
इसके लिए सरकार को भी अभियान चलाना चाहिये कि हर स्कूल में बच्चों के लिए पुस्तकालय हो।विद्यार्थियों में बाल सभाएँ होती रहें जिससे बच्चे सहज जीवन जी सकें और खेल – खेल में ही मानवीय मूल्यों को समझ सकें।

प्रश्न 5 -बाल साहित्य की सीमाएँ तथा सम्भावनाएँ क्या हैं?

उत्तर – बाल साहित्य की सम्भावनाएँ अनन्त हैं।दुनिया का हर क्षेत्र बाल साहित्य से जुड़ा हुआ है।
बस दिक्कत यह है कि बच्चों का साहित्य ( बच्चों की पत्रिकाएँ) बच्चों तक पहुँच नहीं पा रहा है। जबकि बच्चों की पत्रिकाएँ ही सही मायने में बच्चों की दोस्त हैं। क्योंकि बच्चों के दोस्त भले उनको भटका सकते हैं लेकिन पत्रिकाएँ खेल – खेल में रोचक ढंग से उनका सर्वांगीण विकास कर सकती हैं।

प्रश्न 6-बाल साहित्यकारों को साहित्य जगत में क्या वही स्थान मिलता है जितना कि अन्य साहित्यकारों को?

उत्तर – यह एक विडम्बना ही है कि एक तरफ तो हम बाल साहित्य को बहुत दुष्कर मानते हैं और दूसरी तरफ़ बाल साहित्य व साहित्यकारों की उपेक्षा करते हैं। पर जो सही मायने में रचनाकार है वह ऐसी उपेक्षा की परवाह नहीं करते हैं।

प्रश्न 7- आप वरिष्ठ साहित्यकार हैं और वर्षों से साहित्य की कई विधाओं पर लिखते आ रहे हैं। तो नये साहित्यकारों के लिए आपका क्या सुझाव है – क्या उन्हें एक ही विधा पर कलम चलानी चाहिये या अन्य विधाओं को भी आजमाना चाहिये?

उत्तर – हर रचनाकार अपनी अभिरुचि के अनुसार साहित्य सृजन करता है । कुछ साहित्यकार एक ही विधा में काम करते हैं तो कुछ बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं जो कई विधाओं में पूरी दक्षता के साथ काम करते हैं। उदाहरण के तौर पर हम रविन्द्र नाथ टैगोर को ले सकते हैं।
अतः कौन साहित्यकार किस विधा में लिखता है वर उस साहित्यकार पर ही छोड़ देना चाहिए क्योंकि इसके लिए न तो कोई शर्त है और न ही कोई सिद्धांत।

प्रश्न 8 – पुरस्कार किसी साहित्यकार को प्रोत्साहित तो करते हैं। किन्तु आज जिस तरह से पुरस्कारों की खरीद – बिक्री हो रही है वह साहित्य को कहाँ लेकर जायेगा?

उत्तर -यह अर्जित करने का क्षेत्र नहीं बल्कि अपना सर्वस्व लुटाने का क्षेत्र है। जो रचनाकार अच्छा रचेंगे उनकी रचनाएँ आज नहीं तो कल सराही भी जायेंगी और सम्मानित भी होंगी।
मुझे लगता है कि अच्छे व सच्चे रचनाकर को रचने में विश्वास करना चाहिए प्राप्ति में नहीं। क्योंकि जो प्राप्ति में विश्वास करते हैं वो कहीं विकृत राजनीति करते हैं तो कहीं गलत तरीके इस्तेमाल करके सही रचनाकर का हक छीनते हैं जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।