24 कहानियों का गुलदस्ता है ‘रहस्य’
कृति: रहस्य (कहानी संग्रह)
कृतिकार: किरण सिंह
प्रकाशकः पंकज बुक्स
109-ए, पटपड़गंज गाँव
दिल्ली-110091
पृष्ठः 128 मूल्यः 395/-
समीक्षकः मुकेश कुमार सिन्हा
हमारे आस-पास कहानियों के अनगिनत पात्र बिखरे पड़े हैं, बस जरूरत है उन पात्रों को, शब्द रूपी पुष्पों में ढालने की। पुष्पों को चुन-चुनकर हम उसे माला का रूप दे सकते हैं। रंग-बिरंगे पुष्पों से तैयार माला गुलदस्ता रूप में लोगों का बरबस ध्यान आकर्षित करता है। कौन नहीं चाहेगा रंग-बिरंगे फूलों के गुलदस्ता को हाथों में लेना? ऐसा ही एक गुलदस्ता है-‘रहस्य’। 24 कहानियों से सुसज्जित है यह। कहानीकार हैं-किरण सिंह।
किरण सिंह केवल कहानियाँ नहीं गढतीं, साहित्य की हर विधा पर अपनी कलम चलाती हैं। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान सहित कई सम्मानों से सम्मानित किरण सिंह की कलम कविता गढ़ती है, दोहे रचती है, कहानियाँ भी सृजित करती है। ‘प्रेम और इज्जत’ के बाद किरण सिंह की कहानियों की यह दूसरी पुस्तक है।
बकौल किरण, ‘हमारे आसपास के वातावरण में कई तरह की घटनाएँ घटित होती रहतीं हैं, जिसे देखकर या सुनकर हमारा संवेदनशील मन कभी हर्षित होता है तो कभी व्यथित और फिर कभी अचंभित भी। ऐसे में हम मानव के स्वभावानुरूप अपने-अपने मित्रों, पड़ोसियों आदि से उस घटना की परिचर्चा करके अपनी मचलती हुई संवेदनाओं को शांत करने का प्रयास करते हैं। किंतु, एक लेखक की लेखनी मचलने लगती है, शब्द चहकने लगते हैं और लिख जाती हैं खुद-ब-खुद कहानियाँ।
किरण सिंह रचित ‘रहस्य’ की कहानियों में नारी के अंतर्मन की चाहत है, नारी की बेबसी है, तो समाज से उम्मीद भी। आखिर समाज से नारी उम्मीद नहीं लगाये, तो किससे लगायेगी? कितना त्याग करती है नारी? माँ रूप में, पुत्री रूप में, बहन रूप में और न जाने कितने रिश्तों को निभाते-निभाते अपनी खुशियों की भी परवाह नहीं करती है। कहानियों में नयी पीढ़ी को संदेश है, तो नारी को नसीहत भी।
भले ही ‘रहस्य’ से पर्दा उठ गया, लेकिन यह प्रेम की पराकाष्ठा है। प्रेम अन्तर्मन से होता है, यह हाट में बिकने वाली चीज नहीं है। ‘यह मैं सोना के लिए लाया हूँ। उससे ब्याह करूँगा।’ यह हीरा ने कहा। हीरा और सोना का एक-दूसरे से बहुत प्यार था, मगर दोनों विवाहित थे।
कभी कुएँ में गिरे सोना को निकालने वाला हीरा उसे फिर कुएँ से निकालता है, लेकिन तब वह बेजान होती है। लोगों के बीच चर्चा थी कि कुएँ पर सोना की आत्मा भटकती है, पायल की झंकार सुनायी देती है। हालाँकि वह सोना नहीं होती। वह तो हीरा होता है, जो अक्सर रात को चूड़ियाँ, बिंदिया तथा पायल-सिंदूर को लाल रंग के बक्से में रखकर कुएँ के पास पहुँचता है, यह आस लिए कि सोना जिंदा कुएँ से लौटेगी और वह ब्याह रचायेगा!
दिल से किया गया ‘प्यार’ हमेशा पूर्णतः को प्राप्त करता है। ऋचा को पाकर ऋषभ इठला उठा था। हालाँकि ऋचा का संबंध अभिषेक से हो जाता है, लेकिन प्यार का पलड़ा ऋषभ का ही भारी रहा। ‘लाल गुलाब’ लेकर ऋषभ के खड़ा होने से ऋचा का चेहरा गुलाब-सा खिलना लाजिमी था। यह ‘विडम्बना’ ही है कि विवेहत्तर संबंध का खामियाजा स्त्री को ही भुगतना पड़ता है। मेघा यह जान गयी थी कि उसके पति का संबंध उसकी जेठानी से है, फिर भी वह यह सोचकर चुप हो जाती है कि जेठानी की क्या गलती? इस परिवार ने छलकर ही उनकी शादी नपुंसक बेटे से करा दी। वहीं ‘अपशगुन’ कहानी नारी मन की पीड़ा को उजागर करती है।
कहानीकार की कहानियाँ माता-पिता को सलाह देती है। सच में, हम अपनी औलाद को इतना लाड़-प्यार देने लगते हैं कि उनकी गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं। फलतः औलाद के पाँव भटक जाते हैं। जरूरत है माँ-पिता को सही परवरिश देने की, ताकि हर माँ यह कह पाये-‘बेटा सोने पर लाख धूल मिट्टी जम जाये, थोड़ा-सा तपा दो चमक ही जाता है।’ फैशनपरस्त नयी पीढ़ी को नसीहत देती है-‘झूठी शान’। कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता, बस राह गलत न हो!
अक्सर युवा मन भटक जाता है। एकतरफा प्यार के चक्कर में वह कैरियर को दाँव पर लगा देता है। हालाँकि जो संभल गया, उसकी चाँदी है और जो न समझा, वह कैरियर व भविष्य को चौपट कर लेता है। विक्की सँभल गया, इसलिए अच्छे पद पर पहुँचा। कितना अच्छा होता, यदि ‘यू आर माई बेस्ट फ्रेंड’ में लेखिका विक्की के हाथ को मिताली के हाथ में थमा देती। हम प्यार करते हैं, लेकिन इजहार नहीं कर पाते। यदि नितेश मन की बात को मृणालिनी से कह देता, तो उसकी जिंदगी संवर जाती। अब मृणालिनी के हिस्से ‘प्रार्थना’ के सिवाय कौन-सा शब्द शेष है।
कोख कितनी भी बेटियों को जन्म दे दे, लेकिन बेटों को न जने, तो कोख की इज्जत कम हो जाती है। खानदान चलाने के लिए बेटा चाहिए, समाज की यही सोच है। पति की खुशी और वंश वृद्धि के लिए भगवती देवी घर में सौतन लाती है, लेकिन एक वक्त ऐसा आता है कि उसे उपेक्षित जीवन जीना पड़ता है। भगवती जैसी नारी समाज में है, लेकिन आखिर भगवती जैसी महिलाओं को सौतन लाने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? समाज आज तक अपनी सोच को बदल पाने में असमर्थ क्यों है? एक अनुत्तरित प्रश्न है, जिसका जवाब ढूँढा जाना आवश्यक है।
लेखिका स्त्री को नसीहत देती है। लिखती हैं-यदि स्त्री चाहे तो घर को घर बना सकती है, अन्यथा ‘राम वनवास’ हो सकता है। स्त्री की सोच क्यों हो जाती है कि उसके बगैर घर नहीं चल सकता? परिवार को चलाने के लिए सबकी जरूरत होती है, बस ‘आत्ममंथन’ की जरूरत है। संस्मरणात्मक कहानी है-‘नायिका’, तो कोरोना की त्रासदी का दंश है-‘वादा’।
पति और पत्नी के बीच नोंक-झोंक होना कोई असाधारण बात नहीं है, लेकिन इसका क्या मतलब कि हम अपनी जान पर ही आफत मोल लें। ‘जीवन का सत्य’ में अविनाश गलत है या मीना, कहना मुश्किल है। यदि अविनाश सही होता, तो वह अपनी पत्नी के साथ अभद्र व्यवहार नहीं करता और यदि मीना सही होती, तो वह अपनी ‘बगिया’ को छोड़कर संन्यासी जीवन को नहीं अपनाती। पति और पत्नी गाड़ी के दो पहिए हैं, दोनों का साथ जरूरी है गृहस्थ जीवन चलाने में। शक को भी कभी जिंदगी में आने नहीं देना चाहिए, अन्यथा शिखा और नितेश की तरह जिंदगी बदरंग-सी हो जायेगी। प्राची की वजह से दोनों के साँसों की सरगम में जीवन संगीत बजा। जाहिर सी बात है कि ‘जीवन संगीत’ है, मन के आँगन में शहनाई का बजना भी बार-बार जरूरी है।
अपनी जान बचाने के एवज में ‘अमृता’ ने डाॅक्टर दंपति की बदरंग जिंदगी को रोशन करने के लिए कोख को दे देती है। हालाँकि यह अमृता की बदकिस्मती थी कि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। काश! उसकी अभिलाषा पूरी हो जाती।
कहानीकार के शब्द संयोजन के क्या कहने? कहावतों को भी कहानी में पिरोती हैं। सिरहाने बांसुरी रखने से पति-पत्नी में प्रेम बढ़ता है को शब्दों में पिरोकर कहानी रची गयी है-बांसुरी। ‘धर्म’ यह बताने को काफी है कि सबसे बड़ा धर्म है-मानवता। हम बेवजह धर्म को लेकर आपस में लड़ते-झगड़ते हैं। यदि शबाना ने मानव धर्म नहीं अपनाया होता, तो शैलजा का बेटा पता नहीं आज किस हाल में होता? ‘नमस्ते आंटी’ उन महिलाओं को बेपर्द करने की कोशिश है, जो अपनी उम्र छिपाती फिरती हैं। ‘संकल्प’ आईना है। अनसोशल की पैठ के बीच जरूरी है सोशल मीडिया में खुद के लिए लक्ष्मण रेखा तैयार करना। हालाँकि सोशल मीडिया की उपयोगिता है। फेसबुकिया प्रपंच के बीच संध्या की ‘परख’ को दाद देनी पड़ेगी। ‘संतुष्टि’ अच्छी कहानी है। हमारी मदद से किसी की जिंदगी सुधर जाये, तो संतुष्ट होना लाजिमी है। सविता के चेहरे पर संतुष्टि का भाव कहानी को जीवंत बनाती है।
लेखिका किरण सिंह की कलम परिपक्व है। वह जानती है कि कब और कहाँ, किस पात्र से क्या-क्या कहलाना है? ‘वैसे भी पतियों की आदत होती है हिदायत देने की क्योंकि उनकी नज़रों में तो दुनिया की सबसे बेवकूफ औरत उनकी पत्नी होती है’, ‘गलत कहते हैं लोग कि स्त्री ही स्त्री की शत्रु होती है। सच तो यह है कि पुरुष ही अपनी अहम् तथा स्वार्थ की सिद्धि के लिए एक स्त्री के पीठ पर बंदूक रखकर चुपके से दूसरी स्त्री पर वार करते हैं, जिसे स्त्री देख नहीं पाती और वह मूर्ख स्त्री को ही शत्रु समझ बैठती है’, ‘अरे आ जायेगा। लड़का है कउनो लड़की थोड़े है कि एतना चिंता करती हो’, ‘बच्चे बाहर निकले नहीं कि बेलगाम घोड़ा बन जाते हैं’, ‘स्त्रियाँ अपनी खुशी ढूँढ ही लेती हैं…कभी पिता की तो कभी पति की तो कभी पुत्र की खुशियों में’ आदि वाक्यों के माध्यम से लेखिका ने सामाजिक दृष्टिकोण को रखने की कोशिश की है।
लेखिका बलिया की हैं, इसलिए कहानियों में भोजपुरी शब्दों और वाक्यों का प्रयोग है। यह लेखिका का मातृभाषा के प्रति समर्पण का द्योतक है। कहानियाँ चूँकि सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं, इसलिए यह ग्राह्य है। काल्पनिकता है, लेकिन पाठकों को बाँधे रखने के लिए यह जरूरी है। एकाध जगह प्रूव की कमी है, जिसे लेखिका अगले अंक में दुरुस्त कर देंगी, ऐसी आशा है।
चलितवार्ता-9304632536