बिना ईश्वरीय कृपा के कुछ भी सम्भव नहीं है ऐसा हम सभी सुनते आये हैं ! यह सत्य भी है, क्योंकि हम सभी के जीवन में कुछ न कुछ कल्पना से भी परे अचानक ऐसा कुछ चमत्कार हो जाता है कि नास्तिक भी आस्तिक होने पर विवश हो जाता है ! और साहित्य सृजन तो बिना माँ वीणा वादिनी की कृपा के सम्भव ही नहीं है यह अनुभूति तो मुझे है ही लेकिन विदूषी अनुजा शुचि भवि द्वारा रचित मेरे मन के गीत पढ़कर यह विश्वास और भी अटूट हो गया कि अवश्य ही शुचि पर माँ शारदे की कृपा हुई है तभी वह अद्भुत, अद्वितीय, अनुपम तथा उत्कृष्ट सृजन कर पाई है जो निश्चित ही आध्यात्म के प्रति उदासीन रवैया अपनाये हुए युवा पीढ़ी को आध्यात्म की तरफ़ रुझान बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में कामयाब होगी !
मेरे मन के गीत एक दोहा चालिसा है जिसमें चालीस दोहे और दो भजन संग्रहित हैं! इस संकलन में ओम शब्द को दोहा छन्द में बहुत ही खूबसूरती से विस्तार दिया गया है जो लेखिका के बौद्धिक स्तर का स्वयं बखान कर रहा है क्योंकि ओम यह अमर शब्द ही पूरी दुनिया है, जिसका नामांतर प्रणव है। यह ईश्वर का वाचक है। ईश्वर के साथ ओंकार का वाच्य-वाचक-भाव संबंध नित्य है, सांकेतिक नहीं। संकेत नित्य या स्वाभाविक संबंध को प्रकट करता है। सृष्टि के आदि में सर्वप्रथम ओंकाररूपी प्रणव का ही स्फुरण होता है।
ओम का जाप हमें पूरे ब्रम्हांड की इस चाल से जोड़ता है और उसका हिस्सा बनाता है चाहे वो अस्त होता सूर्य हो, चढ़ता चन्द्रमा हो, ज्वार का प्रवाह हो, हमारे दिल की धड़कन या फिर हमारे शरीर के भीतर की परमाणु की ध्वनियाँ ! जब हम ॐ का जाप करते हैं तो यह हमें हमारी सांस, हमारी जागरूकता तथा हमारी शारीरिक ऊर्जा के माध्यम से हम सर्भौमिक सवारी पर सवार होकर आत्मा की गहराई में डुबकी लगाते हैं जो हमें अपार शांति प्रदान करता है !
इस विषय पर लेखन तो अपने आप में ही एक परिपूर्ण कृति है जो लेखिका अपने दोहे के माध्यम से कहती हैं…
जल , ज्वाला, अम्बर, धरा, काल – समय की धार |
ओम शब्द से ही बना, भवि सारा संसार ||
यूँ ही अंतस का नहीं , ओम बना आधार |
चारों वेद बखानते , ओम शब्द का सार ||
इस प्रकार लेखिका के हरेक दोहे में ओम शब्द को विस्तार दिया गया है! दोहे में वर्ण विन्यास, शब्द चयन तथा काव्य शिल्प काबिले तारीफ है! इन दोहों को प्रतिदिन गाकर ओम शब्द के जाप के फल का लाभ उठाया जा सकता है इसलिए हम कह सकते हैं कि यह पुस्तिका पठनीय तथा संग्रहणीय है!
इस कृति के लिए हम लेखिका शुचि भवि को साधुवाद देते हैं तथा साथ ही बधाइयों के साथ-साथ अनंत शुभकामनाएँ भी कि लेखिका का आहित्यिक सफ़र अविराम चलता रहे!
©किरण सिंह
मेरे मन के गीत ( ओउम् दोहा चालीसा )
रचनाकारा – शुचि ‘भवि’
ॐ समस्त जगत का मूल है उस पर बहुत ही आध्यात्मिक लेख लिखा है आपने , इस लेख को शेयर करने के लिए शुक्रिया किरण जी
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हृदय से आभार वंदना जी!
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