कृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि से अनेकों गोपियों का दिल जीता । सबसे अधिक यदि कोई उनकी बांसुरी से मोहित होता तो वो राधा थीं। परंतु राधा से कहीं अधिक स्वयं कृष्ण,राधा के दीवाने थे।
राधा कृष्ण से उम्र में 5साल बड़ी थीं। वृंदावन से कुछ दूर रेपल्ली नामक गांव में रहती थीं, लेकिन रोज कृष्ण की मधुर बांसुरी की धुन उन्हें वृंदावन खींच लाती थी। जब भी कृष्ण बांसुरी बजाते तो सभी गोपियां उनके आसपासमंडराने लगती , उन्हें रिझाने लगती, लेकिन संगीत को सुनते ही सभी मग्न हो जाती। फिर कृष्ण गोपियों को अपनी धुन पर छोड़कर चुपके से राधा से मिलने उनके गांव पहुंच जाते। लेकिन समय कब किसका हुआ है एक दिन कृष्ण को भी वृंदावन को छोड़ मथुरा जाना ही पड़ा । तब वृंदावन में शोक का माहौल हो गया। घर में मां यशोदा तो परेशान थीं ही , कृष्ण की गोपियाँ भी बहुत उदास हो गयीं । जब कृष्ण को लेने के लिए कंस ने रथ भेजा था तो सभी गोपियों ने उस रथ को घेर लिया कि कृष्ण को जाने नहीं देंगे हम । लेकिन कृष्ण को तो राधा की चिंता थी इसलिए जाने से पहले वे राधा से मिलने के लिए छिपकर वहां से निकल गए।
जब राधा सामने आईं तो कृष्ण और राधा एकदूसरे को देखते ही रह गये! कंठ से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी, दोनों कुछ बोल नहीं पा रहे थे, बस उन दोनों के मध्य खामोशियाँ पसर गई थी । राधाकृष्ण के रग – रग में बसी थीं इसलिए कृष्ण के मनोदशा को समझ रहीं थीं इसलिए कुछ कहने और सुनने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी, ! कृष्ण अपनी बांसुरी राधा को देकर लौट गये क्यों कि कृष्ण बांसुरी तो अपनी राधा को रिझाने के लिए ही बजाते थे !
कृष्ण के बिना वृंदावन सूना हो गया। ना कोई चहल थी ना पहल थी और ना ही कृष्ण की लीलाओं की कोई झलक। बस सभी कृष्ण के जाने के ग़म में डूबे हुए थे। परंतु दूसरी ओर राधा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। क्योंकि उनकी दृष्टि में कृष्ण कभी उनसे अलग हुए ही नहीं थे। शारीरिक रूप से जुदाई उनके लिए कोई महत्व नहीं रखती थी। यदि कुछ महत्वपूर्ण था तो राधा-कृष्ण का भावनात्मक रूप से हमेशा जुड़े रहना।
कृष्ण के जाने के बाद राधा दिन रात कृष्ण के ही ख्यालों में खोई रहती थीं । वे कृष्ण प्रेम में अपनी सुध – बुद्ध खो चुकी थीं! माता-पिता के दबाव में आकार राधा को विवाह बंधन में बंधना पड़ा। विवाह के बाद अपना जीवन, संतान तथा घर-गृहस्थी के नाम करना पड़ा, लेकिन राधा के दिल में फिर भी कृष्ण ही बसे थे!
वर्षों बाद जब राधा काफी वृद्ध हो गई थी एक रात वे चुपके से घर से निकल गई, घूमते-घूमते कृष्ण की द्वारिका नगरी में जा पहुंची।
वहां पहुंचते ही उसने कृष्ण से मिलने के लिए निवेदन किया, लेकिन पहली बार में उन्हें वो मौका नहीं मिला। परंतु फिर आखिरकार उन्होंने काफी सारे लोगों के बीच खड़े कृष्ण को खोज निकाला। राधा को देखते ही कृष्ण के खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन दोनों में कोई बात नहीं हुई, क्योंकि वह मानसिक संकेत अभी भी वही थे। उन्हें उस वक्त भी शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ी ।
कहते है राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त करा दिया था । वे दिन भर महल में रहती थीं तथा महल से संबंधित कार्यों को देखती। जब भी मौका मिलता दूर से ही कृष्ण के दर्शन कर लेती, लेकिन फिर भी न जाने क्यों राधा में धीरे-धीरे एक भय पैदा हो रहा था। जो समय के साथ-साथ बढ़ता ही जा रहा था। उन्हें फिर से कृष्ण से दूर हो जाने का डर सताने लगा था । उनकी यही मनोदशा साथ ही बढ़ती उम्र ने उन्हें कृष्ण से दूर चले जाने के लिए विवश कर दिया। अंतत: एक शाम वे महल से चुपके से बिना सोचे समझे ही निकल गई ! उन्हें यह भी पता नहीं था कि वे जा कहां रही हैं बस चलती जा रही थी। परंतु कृष्ण तो ठहरे अंतर्यामी इसलिए जब राधा को कृष्ण की एक झलक पाने की इच्छा प्रबल हुई तो कृष्ण राधा के समक्ष प्रकट हो गये! कृष्ण को अपने सामने देखकर राधा के प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा किन्तु राधा के प्राण त्यागने का समय निकट आ रहा था । कृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांगे, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण ने फिर से कहा कि जीवन भर राधा ने कभी उनसे कुछ नहीं मांगा। इसलिए राधा ने एक ही मांग की कि ‘वे आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते देखना चाहती थी’। कृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद मधुर धुन में उसे बजाया। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया। राधा के प्राण त्यागते ही कृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ डाली और दूर फेंक दिया ।
कृष्ण और राधा की प्रीत अनोखी है , अतुलनीय है … भाव विभोर कर देने वाला प्रसंग
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हाँ वंदना जी…. राधा कृष्ण का प्रेम सच में अनोखा है!
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कृष्ण और राधा का प्रेम अतुलनीय है ।आत्मा का आत्मा का मिलन है ।वासना से बहुत ऊपर है ।जब तक संसार रहेगा, राधा कृष्ण का अनोखा प्रेम रहेगा, बांसुरी बजती रहेगी ।
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जी बिल्कुल…. हार्दिक आभार!
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Adbhut prasang,radhakrishna ek hi the,ekatmakta ki Pratimurti
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सही बात है…. हार्दिक आभार!
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अंत में पढ़ते पढ़ते आँखों से अश्रुओं की धारा बह निकली I बहुत सुन्दर लिखा है आपने मोहतरमा
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